SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सभी हीनयान संप्रदाय के सम्मति शाखा के अनुयायो थे । भिन्न भिन्न देवोपासक संप्रदायों के मंदिर प्रायः पचास की संख्या में थे। कर्ण सुवर्ण नगर के निकट में ही “रक्तमृतिका” नामक एक बहुत बड़ा और प्रसिद्ध बौद्ध संघाराम था तथा इसो संघाराम के निकट कई स्तूप थे। चीनी यात्री के मतानुसार इन सब स्थानों में बुद्धदेव ने धर्म प्रचार किया था एवं उसके बाद सम्राट अशोक ने प्रत्येक स्थान पर एक एक करके स्तूप निर्माण करवाये थे। ११. प्रोड्र-(उड़ीसा) कर्ण सुवर्ण से यात्री ओड्र देश में गया वहां पर एक सौ से अधिक बौद्ध संघाराम थे एवं दस हजार महायान पंथी भिक्षु थे । मन्दिरों की संख्या उस ने पचास लिखी है। इस के सिवाए जिस-जिस स्थान पर बुद्धदेव ने धर्मप्रचार किया था उन सब स्थानों पर दस अशोक स्तूप भी अवस्थित थे। १२. कंगोद-(गंजाम जिला) यहां के सभी निवासी देवोपासक थे। इस देश में बौद्ध एवं बौद्ध संघाराम नहीं थे। देवमदिर एक सौ से अधिक थे। १३. कलिंग-(उड़ीसा के दक्षिण) यहां बौद्धों की संख्या बहुत ही कम थी। यहां पर यात्री ने केवल दस संघाराम और पांच सौ महायान पंथी भिक्षु देखे थे। अबौद्ध ही अत्याधिक संख्या में थे। इन में भी निग्रंथों की संख्या ही सब से अधिक थी। देवमंदिर एक सौ की संख्या में थे। धर्म संप्रदायों के इस संक्षिप्त विवरण से स्पष्टतया ज्ञात होता है कि ईसा की सातवीं शताब्दी के प्रथम भाग में पूर्व भारतवर्ष • (तथा बंगाल) में पौराणिक हिन्दू, बौद्ध और जैन तीनों संप्रदायों का
SR No.007285
Book TitleBangal Ka Aadi Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
PublisherVallabhsuri Smarak Nidhi
Publication Year1958
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy