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. हिदायत बुतपरस्तिये जैनतो आपने पुरे पाठ दाखल करके क्यों नहीं बतलाये ? आपका फर्जथा पुरे पाठ दाखल करके बतलाते, यातें बांचनेवालोकों मालुम होजाता कि यह अधुरा पाठ है, और यह पुरा है.
फिर मुनिकुंदनमलजीने अपने विवेचन पत्रमें तेहरीर किया है, जैसा स्थान होवे वैसा शब्दका अर्थ कियाजाता है, मसलन ! चरण-भूषण यहांपर मुकुट, ताज, पघडी, फेटा, टोपी वगैरा अर्थ कदापि नही होसकते, कर-कंकण यहांपे बुट, जुते, पगरखी, चपल, खडाऊ असे अर्थ कदापि नहीं होसकते, इसी वजह चैत्य शब्दके श्री जैनके प्राचीन असली सिद्धांतोमें अनेक अर्थ किये है. _ (जवाब.) अगर चैत्य शब्दके अनेक अर्थ किये है तो उनमेसे एक दो अर्थ जरुर कर बतलानाथा, चैत्य शब्दके माइने जिनमंदिर और जिनमूर्ति है, इसमें कोई शक नहीं, मेने चरणभूषणकी जगह मुकुटताज और करकंकणकी जगह बुट, पगरखी वगेरा अयोग्य अर्थ नहीं किये, योग्य किये है। अगर किसीजगह अयोग्य अर्थ किये हो, तो बतलाइये. __आगे मुनि कुंदनमलजी अपने विवेचनपत्रमें इस मजमूनको पेंश करते है कि तीर्थकरोके वचनोको शांतिविजयजी धक्का पहुचाके अपनी मतरूढसे एकपक्ष पकडके चैत्य इस शब्दका प्रतिमा एसा एक अर्थ करके अपना मत सिद्ध करना चाहते है, मगर श्री जैनके प्राचीन असली सिद्धांतोके बर्खिलाफबात अकलमंद हुशियार आदमी कोई वजहसे अंगीकार नहीं करते है, देखो !
चैत्य शब्दकी पुष्टि के बारेमें शांतिविजयजीने हैमकोशका दाखला दिया है, मगर हैमकोशका कर्ता मूर्तिपूजक है, इसलिये यह साक्षी मंजुर कदापि नहीं होसकती. ___ (जवाब.) अगर हैमकोशके कर्ता मूर्तिपूजक होनेसे उनकी साक्षी मंजुर नही, तो मूर्तिनिषेधक जैनाचार्यकी साक्षी दिजिये,