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हिदायत बुतपरस्तिये जैन १३ रायपसेणीसूत्र. २९ दशाश्रुतस्कंधसूत्र. १४ जीवाभिगमसूत्र. ३० वरत्कल्पसूत्र. १५ प्रज्ञापनासूत्र. ३१ व्यवहारसूत्र. १६ चंद्रप्रज्ञप्तिसूत्र. ३२ आवश्यकसूत्र.
ए बतीसमूत्र स्थानकवासी मजहबके लोग मानते है, इनमें जो छविशमें नंबरपर नंदीसूत्र कहा है, उसमे पेतालिस आगम वगेरा चौदह हजार प्रकीर्णकशास्त्र मानना लिखे, ऊनको नही मानना इसकी क्या वजह है ? स्थानकवासी मजहबके लोग कहा करते है, हम तीर्थंकर गणधरोके वचनको मंजूर रखते है. बतलावे! फिर प्रज्ञापनासूत्र और दशवैकालिकसूत्र जो ऊपर बतीससूत्रोकी गिनतीमें (१५) और (२५)में नंबरपर गिनाये गये है, तीर्थकर गणधरोके बनाये हुवे नही, आचार्योंके बनाये हुवे है, इनकों क्यौं मंजुर रखे गये. मुनि कुंदनमलजी इसका जवाब देवे, अगर कहा जाय नंदीसूत्रमें इनके नाम दर्ज है, इसलिये मंजुर रखे है, तो दुसरे सूत्रोके नामभी नंदीसूत्रमें दर्ज है, उनको क्यों नही मानते ? तीर्थकर महावीरस्वामीके बाद (९८०) वर्सके पीछे जब देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण जैनाचार्यने सब जैनाचार्योकी सलाहसे जैनपुस्तक ताडपत्रपर लिखे, तब दशवैकालिक और प्रज्ञापनासूत्रके नाम दर्ज किये है.
मूर्तिपूजा धर्मी शख्शोकों एतकात बढानेवाली चीज है, जहां जिनमंदिर बने रहेंगें वहां तरक्की धर्मकी बनी रहेगी, जिनमंदिर बनवानेवाला श्रावक बारहमे देवलोककी गति हासिल करे, ऐसा महा निशीथसूत्रमें पाठ है, अगर कोई इस दलिलकों पेंश करे कि बतीसमूत्रकी गिनतीमें महा निशीथसूत्र नहीं गिना है, जवाबमें मालुम हो, बतीससूत्रकी गिनतीमें नंदीसूत्र माना गया है, और ऊस नंदीसूत्रमें महा निशीथसूत्रका नाम दर्ज है, इससे साबीत हुवा