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(१०४) का अनुमोदन करते हुवे आप फरमाते हैं कि-आप जैनसमाज में उद्योतकारी हैं इसी वजह से आपने बादशाह को जैनाबाद में उपदेश देकर जीवहिन्सा बन्ध कराई, जिस से धर्म का उद्मोत हुवा ! इस के अतिरिक्त आप अपने अनुभव से लिखते हैं कि “ समय देखते आप जैसे फिर न होंगे” इस से पाया जाता है कि पूर्वकाल में जैनाचार्यों की जो प्रतिभा व प्रशंसा चमत्कारों के कारण प्रसिद्ध थी उस से भी आप का पूरा परिचय था । और यह भविष्यवाणी आप की बिलकुल ठीक निकली । क्यों कि सूरिमहाराज के बाद एसे प्रभाविक कौन जैनाचार्य हुवे हैं जिन का नाम हमारे जानने में नहीं है ? एसे प्रभाविक आचार्य महाराज की प्रशंसा बादशाह व वीरवर प्रतापी प्रखरनरेन्द्र महाराणा प्रतापसिंहजी करें यह बिलकुल ठीक है और उन आचार्य के बल प्राक्रम की ओर देखते जैनसमाज को तो मगरुर बनना चाहिये।
फिर आप फरमाते हैं कि बड़े महाराणासाहब के समय आप पधारे थे, उस के बाद पधारना नहीं हुवा सो पधारना चाहिये । पाठक ! यह कितने स्नेह के बचन हैं। आमंत्रण भी प्रेममय अंतःकरण का हो तो कितना सुहावना और आदरणीय होता है । इस का भाव तो जिन को प्रेम पराकाष्ठा का अनुभव है वही ठीक तरह से जान सकते हैं । फिर आप प्राचीनकाल के सम्बन्ध को बतलाते हुवे फरमाते हैं कि आप का मान व मरियादा जो प्राचीनकाल से चली आ रही है, उसी मुवाफिक