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________________ ( १०३ ) सुनाना चाहते हैं । इस नाम से तो सारी दुनिया परिचित है तथापि हम इतना जरूर समझा देते हैं कि महाराणा प्रतापसिंहजी का प्रेम जैन तीर्थ व जैन गुरुओं की ओर परिपूर्ण था । और आप जैनसमाज के चाहनेवाले व प्रतिज्ञा के पूरे अटल नीतिमय शासन चलानेवाले प्रजाहितेच्छु एक वीरवर नरेन्द्र थे, जिन के शासन में गाय सिंह एक घाट पानी पीने की कहावत जगजाहिर है । ऐसे प्रतापी महाराणा धिराजने एक पत्र श्रीमान् जैनशासनदीपक जैनाचार्य श्रीहीरविजयसूरीश्वरजी के नाम नगर मकसुदाबाद को लिखा है, जिस की नकल पृष्ट ५६ पर दे चुके हैं । 1 उस परवाने से यह साफ तौर पर जाहिर है कि श्रीमान् हरिविजयसूरिजी महाराज जिन का सम्बन्ध बादशाह अकबर से परिपूर्ण था । और बादशाह के दरबार में आचार्यमहाराज श्रीहीर विजयसूरिजी के शिष्य सिद्धिचन्द्र भानुचन्द्र का आनाजाना विशेष रूप में था । और पूर्णप्रेम व मिलनसारी का गाढ सम्बन्ध बादशाह के साथ होने से आपने जीवदया बाबत व मानमर्यादा के सिलसिले में श्री आचार्य महाराज के नाम पर परवाने बादशाहसाहब से लिखाये हैं जिस का उल्लेख सूरीश्वर और सम्राट नाम की पुस्तक में है । उस परवाने का हाल सुन कर महाराणा साहब को आनन्द उत्पन्न हुवा, और उस खुशी में आप एक पत्र आचार्यवर्ण्य हीरविजयसूरीश्वरजी महाराज के नाम लिखते हैं, जिस में जीवदया 86 ""
SR No.007283
Book TitleKesariyaji Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1934
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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