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________________ (१०१) उन्नति करपाये । और उस समय सारी प्रजा राजभक्त जिस में भी जैन प्रजा तो सम्पूर्ण राजभक्त थी, और लोग सुखी अवस्था में अपना अपना धर्म-कर्म साध्य करते थे और धर्म में किसी को भी किसी प्रकार का विक्षेप नहीं होता था । राज्यकृपा का वर्णन कहां तक करें ? अतुल कृपा और समय समय पर सहायता के उदाहरण इतिवृत्तों में सैंकडो प्राप्त हो सकते हैं । जिस में भी महाराणा लाखाजी, महाराणा हम्मीरसिंहजी, महाराणा मोकलजी, महाराणा कुम्भाजी, महाराणा प्रतापसिंहजी और महाराणा राजसिंहजी की नीतिमय राजधानी में तो जैन समाज का सितारा पूरी चमक बता रहा था; और उपयुक्त महाराणाओं के समय व बाद में भी इस राज्य में अमात्य-प्रधानवर्ग बहुत करके जैनी ही नियत हुवे हैं, जिन के उदाहरण इतिहासों से सम्पादन हो सकते हैं । और मेवाडराज्य की कृपा किस प्रकार रही जिस की कुछ झांकी हम यहां बताना चाहते हैं सो देखिये। विक्रम सम्बत् १४५० में मेवाड का मुख्य मंत्री रामदेव और चुण्ड था, जिन के आग्रह से जैनाचार्य श्री सोमसुन्दरसूरिजीने मेवाड देश में बहुत विहार किया और उसी जमाने में नीम्ब श्रावक के खर्च से देवकुलपाटक ( हाल में देलवाडा ) में श्रीभुवनवाचकजी उपाध्याय को प्राचार्यपद दिया गया। इसी तरह महाराणा लाखाजी का विश्वासी श्रावक वीसलदेवने विक्रम सम्वत् १४३६ में श्री श्रेयांसनाथ भगवान के मन्दिर की प्रतिष्ठा
SR No.007283
Book TitleKesariyaji Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandanmal Nagori
PublisherSadgun Prasarak Mitra Mandal
Publication Year1934
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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