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मेवाड राज्य और जैन समाज.
मेवाड देश किसी समय जैनत्त्व से सम्पूर्ण सुशोभित था और इस की कीर्ति का सूर्य प्रकाशमान होकर सर्वत्र प्रकाशित किरणें फेंक रहा था, और इस जैन धर्म की महिमा
आकाश तक पहुंच चुकी थी, जिस के कारण राजा-प्रजा में जय जय कार ध्वनि की गुञ्जारव सारे देश में होती थी। उस ही की यादगार में आज देखते हैं तो गांव गांव में और जंबल-वनखन्ड-पहाड-पर्वतों में जैन मन्दिर भाबाद और जीर्ण व खंडियेर हालत में सैंकडों की तायदाद पर नजर आते हैं । जैन धर्म का इतना प्रकाश मेवाड देश में होने के दो कारण हमारी समझ में आते हैं । अव्वल तो राजकुटम्ब के महाराणाधिराजने जैन धर्म को खूब अपनाया, समय समय पर सहायता पहुंचाई ओर जैन धर्माचार्यों को व जैन धर्म को उच्च द्रष्टि से देखा । दोयम मेवाड देश के राज्य कारभारीदीवान-मंत्री बहुधा जैन धर्मी ही रहे, जिन को लक्ष्मी प्रसन्न और धनसम्पत्ति विपुल पाने के कारण जैसी के चाहिये थी