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उथापे ने जती बैठ रहे तथा कोइ जागीरदार महाजन राखे सो आग्या बनां राखवा पावे नही न कोइ जबरीसुं रहे तथा राखेगा जणी तीरांसु गुनेगारी लेवायगा और तीरथ की परतेसटा माल उछ्व उपधान सदा बंद मागेसुं होवे हे वो वेगा जुनी मरजादा मटेगा नही और इं गच्छरो गैरवाजवी केवत करेगा नही, सदा मुरजाद माफक चाल्या जावेगा परवानगी महेता सेरसिंघजी सं. १६०५ वरसे मंगसर विद ७ सुकरे.
नम्बर ( ६ )
स्वस्ति श्रीजसनगर सुथाने महाराजाधिराज महाराणा श्रीजेसींघजी आदेशातु साह सुरताण तथा साह सुरजमल समस्त महाजना कस्य च पजुसरा मांहे सदा ही अगतो छुटे हे सो छुटवारो हुक्म हुवो हे परवानगी साह जसो सं. १७५० वरसे भादवा वद १३ सुकरे.
नम्बर ( ७ )
स्वस्ति श्री अहमदनगरे शुभसथाने सरव चोपमा लायक भट्टारक श्रीविजेयधरणेंद्रसूरिजी एतान स्वस्ति श्रीउदेपुर शुभस्थाने महाराजाधिराज महाराणाजी श्रीसजनसिंहजी लीनावतां पगे लागणो बांचसी अठारा समीचार श्री........ जी की कृपासुं भला हे राजरा सदा भला चाहिजे राजपुज्य हो अपंच राज की श्री ऋषभदेवजी की तरफ पधारवा की मालुम हुइ जींसुलीखवो हे के अबर के चातुरमास अठे ही पधार