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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज
लिए हाथ बढ़ाया, किसान उसका हाथ पकड़कर ले चला। गंधीपुत्र चिल्लाए-"यह क्या कर रहे हो ?” किसान ने उत्तर दिया-"कुछ नहीं, दो पायली सत्त ले जा रहा हूँ।” लोग इकट्ठे हो गये। बड़ी मुश्किल से बीच-बचाव किया गया। किसान को अपनी गाड़ी वापिस मिल गयी। __कभी साधारण-सी बात पर भी लोग मुकदमा लेकर राजकुल में पहुँच जाते। करकंडु और किसी ब्राह्मण में एक बांस के डंडे के ऊपर झगड़ा हो गया। दोनों कारणिक (न्यायाधीश) के पास गये । बांस करकंडु के श्मशान में उगा था, इसलिए वह उसे दे दिया गया। एक बार किसी लाट देशनिवासी (गुजरातो) और महाराष्ट्र-निवासी में छाते को लेकर झगड़ा हो गया। दोनों ने न्यायालय की शरण ली।
कभी जैन श्रमणों को भी राजकुल में उपस्थित होना पड़ जाता। जब वज्रस्वामी छः महीने के थे, तभी जैन श्रमण उन्हें दीक्षा के लिए लेग ये । वज्रस्वामी की माता सुनन्दा ने जैन श्रमणों के विरुद्ध राजकुल में मुकदमा कर दिया। राजा पूर्व दिशा में, जैनसंघ के सदस्य दक्षिण दिशा में तथा वज्रस्वामी के सगे-सम्बन्धी राजा की बाईं तरफ बैठे। सारा नगर सुनन्दा की तरफ था। सुनन्दा ने अपने बालक को खिलौना आदि दिखाकर तरह-तरह से आकर्षित करना चाहा, लेकिन बालक उसके पास न आया। इस समय पहले से ही श्रमण-धर्म में दीक्षित वनस्वामी के पिता ने जो जैन श्रमणों की ओर से मुकदमे की पैरवी कर रहे थे-बालक को बुलाया और उसे रजोहरण ले लेने को कहा। बालक ने अपने पिता की आज्ञा का पालन किया। यह देखकर राजा ने वज्रस्वामी को उसके पिता के सुपुर्द कर दिया ।' ___ कभी रात्रि के समय वेश्याएँ जैन-श्रमणों के उपाश्रय में प्रवेश कर उपद्रव मचातीं। ऐसे समय उसे वहां से निकाल भगाने के सारे प्रयत्न
१. दशवैकालिकचूर्णी, पृ० ५८; वसुदेवहिंडी, पृ० ५७; तथा देखिए श्रावश्यकचूर्णी पृ० ११६ ।।
२. उत्तराध्ययनटीका ६, पृ० २३४ । ३. व्यवहारभाष्य ३.३४५ आदि, पृ० ६६ । ४. आवश्यकचूर्णी, पृ० ३६१ इत्यादि ।