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पहला अध्याय : केन्द्रीय शासन व्यवस्था
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दुगुनी, और भवन की ऊंचाई चौड़ाई की अपेक्षा कम होती है । भवन ईंट के बने होते हैं ।' प्राचीन सूत्रों में आठ तलवाले प्रासादों का उल्लेख है; ये प्रासाद सुन्दर शिखरों से युक्त तथा ध्वजा, पताका, छत्र और मालाओं से सुशोभित रहते और इनके फर्शो में भांतिभांति के मणिमुक्ता जड़े रहते । विविध प्रकार के नृत्य और गान यहां होते रहते और वादित्रों की मधुर ध्वनि गूंजती रहती । चम्पा नगरी अपने धवल और श्रेष्ठ भवनों के कारण विख्यात थी । शीतगृह शीतकाल में उष्ण और उष्णकाल में शीत रहते थे ।" चक्रवर्ती, वासुदेव, मांडलिक राजा तथा साधारण जनों के लिए अलग-अलग प्रकार के भवन बनाये जाते थे । निशीथचूर्णी में एक खंभेवाले प्रासाद का उल्लेख है । इस प्रासाद के निर्माण के लिये राजा श्रेणिक ने बढ़ाई बुलवाये । लकड़ी काटने वालों ने जंगल की ओर प्रस्थान किया । लक्षणों से युक्त एक महावृक्ष पर उनकी नज़र पड़ी। उन्होंने उसे धूप दी और तत्पश्चात् घोषणा की यदि यह वृक्ष किसी भूत आदि से परिग्रहीत हो तो दर्शन दे । भूत ने रात्रि के समय अभयकुमार को दर्शन दिये । अभयकुमार ने रक्षकों को नियुक्त कर दिया जिससे उस वृक्ष को कोई न काट सके । ७
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राजा का अन्तःपुर
राजाप्रसाद में अन्तःपुर ( ओरोह = अवरोध ) का स्थान महत्वपूर्ण था। देश को आन्तरिक और बाह्य राजनीतिक उथल-पुथल में अन्तःपुर
१. अभिधानराजेन्द्र कोष में 'पासाय' शब्द |
२. राजप्रश्नीय, पृ० ३२८ ।
३. ज्ञातृधर्मकथा १, पृ० २२; उत्तराध्ययनसूत्र १६.४; उत्तराध्ययनटीका १३, पृ० १८६ में सप्तभूमिक प्रासाद का उल्लेख है । जातकों में वर्णित विषय के लिए देखिए रतिलाल मेहता को प्री-बुद्धिस्ट इण्डिया, पृ० १०७ इत्यादि ।
४. पपातिकसूत्र १ ।
५. बृहत्कल्पभाष्य १. २७१६ ।
६. चक्रवर्तियों के १०८, वासुदेवों के ६४, मांडलिकों के ३२ और साधारण जनों के १२ हाथ ऊँचे भवन होते थे, व्यवहारभाष्य ६.६, गाथा ४६ । ७. निशीथ चूर्णी पीठिका, पृ० ६ |