________________
दूसरा अध्याय : जैन आगम और उनकी टीकाएँ
३७
• अनुयोगद्वार इन सोलह आगमों पर चूर्णियां लिखी गयी हैं । इनमें पुरातत्व के अध्ययन की दृष्टि से निशीथविशेषचूर्णी ( अथवा निशीथचूर्णी) और आवश्यकचूर्णी का स्थान सर्वोपरि है । इस साहित्य में देश-देश के रीति-रिवाज, मेले-त्यौहार, दुष्काल, चोर-लुटेरे, सार्थवाह, व्यापार के मार्ग आदि का बड़ा रोचक वर्णन है । वाणिज्यकुलोन कोटिकगणोय वज्रशाखीय जिनदासगणि महत्तर अधिकांश चूर्णियों के कर्ता के रूप में प्रसिद्ध हैं । इनका समय ईसवी सन् की छठी शताब्दी के आसपास माना जाता है । कुछ आगमेतर ग्रन्थों पर भी चूर्णियां लिखी गयी हैं ।
आगमों पर अन्य अनेक विस्तृत टीकाएं और व्याख्याएं भी लिखी गयी हैं। अधिकांश टीकाएं संस्कृत में हैं, यद्यपि कतिपय टीकाओं का कथा सम्बन्धी अंश प्राकृत में उद्धृत किया गया है । नियुक्तियों की भांति आगमों की अन्तिम वलभी- वाचना के पूर्व ही टीका-साहित्य लिखा जाने लगा था। आगमों के प्रमुख टीकाकारों में याकिनीसूनु हरिभद्र, शीलांक, शांतिसूरि, नेमिचन्द्र, अभयदेवसूरि और मलयगिरि आदि आचार्यों के नाम उल्लेखनीय हैं। टीकाओं में आवश्यकटीका, उत्तराध्ययन की पाइय ( प्राकृत ) टीका आदि मुख्य हैं। इन टीकाओं में अनेक लौकिक और धार्मिक कथाएं, प्राचीन जनश्रुतियां, अर्ध- ऐतिहासिक और पौराणिक परम्पराएं, तथा निर्ग्रन्थ मुनियों के परम्परागत आचारविचार आदि महत्वपूर्ण विषय प्रतिपादित किये गये हैं ।
वास्तव में आगम-सिद्धांतों पर व्याख्यात्मक साहित्य का इतनी प्रचुरता से निर्माण हुआ कि वह एक अलग साहित्य हो बन गया । इस साहित्य ने उत्तरकालीन कथा-साहित्य, चरित - साहित्य और धार्मिक साहित्य को विशेष रूप से प्रभावित किया, इसलिए यह साहित्य विशेष उपयोगी है।
प्रस्तुत ग्रन्थ में आगम - साहित्य और उस पर लिखे गये व्याख्यासाहित्य के आधार से तत्कालीन जनजीवन को 'प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है ।