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________________ परिशिष्ट ३ ५२९ कत्तंती = कातने वाली ५७४ (पिं०)| काहल = फल्गुप्राय २८४ ( बृ०) कत्थ = कहां (कोथाय बंगाली में) किढी=दासी अथवा वृद्ध श्राविका १२०५, १६५६ (६०) कप्पट्ठग = बालक ४. ३३ (बृ.) कप्पट्ठी = कब्बट्ठी = जैन साधु कीए = क्रीतः = खरीदा हुआ १. को रहने का स्थान देने वाले ६०६ (६०) गृहस्थ की कन्या अथवा युवती | कीड = कीड़ा ६१२ (बृ.) या कुल बधु ३५५ (नि०) | कुंचवीरग = एक प्रकार का जलयान कप्पर = खप्पर ५११ (नि०) | ५३२३ (नि०) कयल = केला १७१२ (६०) | कुंडय = चावलों की कणी १४८ कयवर = कचरा ३१४ (६०) (नि०) करग = पानी का बर्तन ( करवा ) कुकम्मिग = बर्तन, शालि, दाल ६०४ (नि०) आदि का अपहरण करने वाला कल्लं = कल १५४१ (६०) ३६०६ (६०) कल्लाल = कलाल ६०४७ ( निच०) | कुक्कुडी = (कूकड़ी गुजराती) मुर्गी ३. ३२ ( व्य०) कलिंच = तृण के पूले १४६८ (६०), 7 | कुट्टणी = कूटने वाली २६६३ कलिंच = बांस की खप्पच ५०६ (६०) (नि०) कडंग = जिस वन में तुंबी पैदा कली = प्रथम १०८४ (बृ.) होती हो ४०३४ (६०) । कल्लुग = नदी के पत्थर ५६४६ । (बृ०) कुडंड = बांस का टोकरा ६२१४ कवड्डग = कौड़ी १६६६ (६०) (६०) कसट्ट = कचरा ५५७ ( ओ०) कुडुंभग = जल का मेंढक १६४ । कहकहकह = कहकहा लगाना (नि० चू०) ___ १२६६ (६०) कुडुइ = कुब्जा ४०६१ (बृ.) । कहणा = कहना = कहणा (पश्चिमी कुणी = जिसके हाथ न हो (टूंडा) उत्तरप्रदेश की बोली में) ११६० ३०१८ (६०) . (बृ०) कुतव = कुतप = जीन ३६६२ (६०) काणिट्ट = पत्थर (लोहे की व्य० कुप्पासय = कूर्पासिक = कंचुक ४.५५५ टी० में) की ईंटें ४७६८ ३६५४ (६०) कामगहह = कामगर्दभ (ब्राह्मण कुरिण = बड़ा जंगल ४४७ (ओ०) के लिए प्रयुक्त ४४६ (पिं०) | कुरुण = राजा या किसी अन्य का कायिकी = मूत्र २०७२ (बृ०) । धन २. २३ (व्य० टी०) ३४ जै० भा०
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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