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दूसरा अध्याय : जैन आगम और उनकी टीकाएँ २६ समय पर विषय और भाषा आदि में परिवर्तन 'और संशोधन होते रहने पर भी वर्तमान में उपलब्ध आगम मान्य हैं।
__ आगमों की वाचनायें महावीर-निर्वाण (ईसवी सन के पूर्व ५२७ ) के लगभग १६०. वर्ष पश्चात् (ईसवी सन् के पूर्व ३६७) चन्द्रगुप्त मौर्य के काल में, मगध देश में भयंकर दुष्काल पड़ने पर अनेक जैन भिक्षु भद्रबाहु के नेतृत्व में समुद्रतट की ओर प्रस्थान कर गये, शेष स्थूलभद्र ( महावीर-निर्वाण के २१९ वर्ष पश्चात् स्वर्गगमन ) के नेतृत्व में वहीं रहे । दुष्काल समाप्त हो जाने पर स्थूलभद्र ने पाटलिपुत्र में जैन श्रमणों का एक सम्मेलन बुलाया जिसमें श्रुतज्ञान का ११ अंगों में संकलन किया गया। दृष्टिवाद किसी को स्मरण नहीं था, अतएव पूर्वग्रन्थों का संकलन न हो सका। चतुर्दश पूर्वो के धारी केवल भद्रबाहु थे, जो इस समय महाप्राणव्रत का पालन करने के लिए नेपाल चले गये थे। पूर्वो का ज्ञान सम्पादन करने के लिए जैनसंघ की ओर से कतिपय साधुओं को नेपाल भेजा गया। इनमें से केवल स्थूलभद्र ही पूर्वो का ज्ञान प्राप्त कर सक । शनैः-शनैः, पूर्वो का ज्ञान नष्ट हो गया। जो कुछ सिद्धान्त शेष रहे उन्हें पाटलिपुत्र के सम्मेलन में संकलित कर लिया गया। इसे पाटलिपुत्र-वाचना के नाम से कहा जाता है ।
कुछ समय पश्चात् , महावीर-निर्वाण के लगभग ८२७ या ८४० वर्ष बाद (ईसवी सन् ३००-३१३) आगमों को पुनः व्यवस्थित रूप देने के लिए, आर्य स्कंदिल के नेतृत्व में मथुरा में दूसरा सम्मेलन हुआ। दुष्काल के कारण इस समय भी आगमों को बहुत क्षति पहुँची । दुष्काल समाप्त होने पर, इस सम्मेलन में जिसे जो कुछ स्मरण था उसे कालिक श्रुत के रूप में संकलित कर लिया गया। जैन आगमों की यह दूसरी वाचना थी जिसे माथुरी वाचना के नाम से कहा जाता है। ___ लगभग इसी समय नागार्जुनसूरि के नेतृत्व में वलभी (वाळा, सौराष्ट्र) में एक और सम्मेलन भरा । इसमें जो सूत्र विस्मृत हो गये थे उनकी संघटनापूर्वक सिद्धांत का उद्धार किया गया ।
१. आवश्यकचूर्णी २, पृ० १८७ । २. नन्दीचूर्णी पृ० ८।
३. कहावली २६८, सुनि कल्याणविजय, वीरनिर्वाण और जैनकाल गणना, पृ० १२० आदि से।