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दूसरा अध्याय जैन आगम और उनकी टीकाएँ
आगम-सिद्धांत जो स्थान ब्राह्मण परम्परा में वेद और बौद्ध परम्परा में त्रिपिटिक का है, वही स्थान जैन परम्परा में आगम-सिद्धांत का है । आगमों को श्रुत, सूत्र, ग्रन्थ, सिद्धांत, शासन, आज्ञा, वचन, उपदेश, प्रज्ञापना, अथवा प्रवचन भी कहा गया है। जैनों के इस प्राचीन साहित्य में संस्कृति और इतिहास आदि से सम्बन्ध रखने वाली अनेक महत्वपूर्ण परम्पराएँ सुरक्षित हैं । जैन मान्यता के अनुसार अर्हत् भगवान् ने पूर्वो में निबद्ध आगम-सिद्धांत का अपने गणधरों को निरूपण किया और उन्होंने उसे सूत्ररूप में निबद्ध किया।
आगमों की संख्या ४६ ( जिनमें ४५ उपलब्ध हैं ) १२ अंग ( द्वादशांग अथवा गणिपिटक, अथवा प्रवचनवेद ):-आयारंग (आचारांग), सूयगडंग (सूत्रकृतांग), ठाणांग (स्थानांग), समवायांग, वियाहपएणत्ति (व्याख्याप्रज्ञप्ति,अथवा भगवती), नायाधम्मकहाओ (ज्ञातृधर्मकथा),उवासगदसाओ (उपासकदशा), अन्तगडदसाओ(अन्तः कृद्दशा), अणुत्तरोववाइयदसाओ (अनुत्तरोपपातिकदशा), पण्हवागरणाई (प्रश्नव्याकरण ), विवागसुय (विपाकसूत्र ), दिट्टिवाय ( दृष्टिवाद नष्ट हो जाने के कारण अनुपलब्ध है। इसमें चौदह पूर्वो का समावेश है)।
१२ उपांग:-ओववाइय (औपपातिक), रायपसेणइय (राज.
१. बृहत्कल्पभाष्य पीठिका १७४; आवश्यकचूर्णी, पृ० १०८।।
२. दृष्टिवाद के पांच भेद हैं-परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वगत और चूलिका । इसे भूतवाद भी कहा गया है । दिगबर सम्प्रदाय के अनुसार आगमों में केवल दृष्टिवाद सूत्र का कुछ दंश बाकी बचा है। पुष्पदंत का षटखंडागम
और भूतबलि का कषायप्राभृत नामक ग्रंथ शेष हैं जो पूर्वो के आधार से लिखे गये हैं।
३. अंग और उपांग में कोई साक्षात् संबंध नहीं है। नंदी में कालिक और उत्कालिक रूप में उपांगों का उल्लेख है, उपांग के रूप में नहीं।