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________________ पांचवां खण्ड ] पहला अध्याय : श्रमण सम्प्रदाय ४२३ विनयवाद के अनुयायी अनेक तपस्वियों का उल्लेख जैन आगमसाहित्य में उपलब्ध होता है । जब भगवान महावीर गोशाल के साथ विहार करते हुए कुम्मग्गाम पहुँचे तो वेसियायण ( वैश्यायन) बालतपस्वी ऊभ्वबाहु करके तप कर रहा था। तेजोलेश्या का वह धारी था, जिसका प्रयोग वैश्यायन ने गोशाल के ऊपर किया था। वह प्राणामा प्रव्रज्या का धारक था, इसलिए वह देवता, राजा, माता, पिता और तियेच आदि की समान भाव से भक्ति करता था ।२ मौर्यपुत्र तामली एक दूसरा विनयवादी था। वह यावज्जीवन छट्ठम छ? तप करता हुआ, ऊर्ध्वबाहु होकर सूर्य के अभिमुख खड़ा हुआ आतापना किया करता था। पारणा के दिन आतापन-भूमि से उतर कर, वह काष्ठ का पात्र ले, ताम्रलिप्ति नगरी में ऊंच, नीच और मध्य कुलों में भिक्षा के लिए भ्रमण करता था । भिक्षा में वह केवल चावल ही लेता और उन्हें इक्कीस बार धोकर शुद्ध करता। प्राणामा प्रव्रज्या का धारक होने के कारण वह इंद्र, स्कंद, रुद्र, शिव, कुबेर, आर्या, चंडिका अथवा राजा, मंत्री, पुरोहित, सार्थवाह, या कौए, कुत्ते और चांडाल को जहां-कहीं भी पाता, वहीं प्रणाम करता, ऊँचे देखकर ऊँचे और नीचे देखकर नोचे प्रणाम करता। इसके अतिरिक्त, और भी अनेक श्रमणों और साधुओं का उल्लेख जैनसूत्रों में मिलता है । वनीपक साधु आहार के बहुत लोभी होते थे तथा शाक्य आदि के भक्तों को अपने आपको दिखाकर वे भिक्षा ग्रहण करते थे। अथवा अपनो दुःस्थिति बताकर प्रिय भाषण द्वारा भिक्षा १. आवश्यकनियुक्ति ४९४; आवश्यकचूर्णी, पृ० २६८ । २. अविरुद्धो विणयकरो देवाईणं पराए भत्तीए । जह वेसियायणसुओ एवं अन्नेवि णायव्वा । -औपपातिकसूत्रटीका, पृ० १६९ । ३. व्याख्याप्रज्ञप्ति ३.१ । पूरण नामक तपस्वी को दानामा प्रव्रज्या का धारक बताया गया है। वह भिक्षा के चार भाग करता था। पहले भाग को राहगीरों को, दूसरों को कौओं और कुत्तों को, तीसरे को मछली और कछुओं को देता और चौथा भाग वह स्वयं खाता था। उसने अपने उपकरण तथा भक्तपान का त्याग कर सल्लेखनापूर्वक देह का त्याग किया, वही ३.२ । बौद्धसाहित्य में पूरणकस्सप को बहुजनसम्मत यशस्वी तीर्थंकरों में गिना गया है। ४. पिंडनियुक्ति ४४४-४५ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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