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पहला अध्याय : जैन संघ का इतिहास
२१ दिगम्बर और श्वेताम्बर उत्पत्ति श्वेताम्बर परम्परा में महावीर-निर्वाण के ६०९ वर्ष पश्चात् , शिवभूति को बोटिक (दिगम्बर) मत का संस्थापक बताया है। इसे आठवां निह्नव कहा है; इसकी उत्पत्ति रथवीरपुर में हुई। शिवभूति रथवीरपुर के राजा के यहां नौकरी करता था। उसे रात को घर लौटने में देर हो जाती। एक दिन उसकी स्त्री ने घर का दरवाजा खोलने से मना कर दिया, इस पर शिवभूति नाराज होकर दीक्षा ग्रहण करने के लिए साधुओं के उपाश्रय में जा पहुँचा। लेकिन साधुओं ने उसे दीक्षा देने से इन्कार कर दिया। इसपर स्वयं अपने केशों का लोच करके उसने जिनकल्प धारण किया। बाद में शिवभूति की बहन ने अपने भाई के पास दीक्षा ग्रहण की।'
दिगम्बर आचार्य देवसेन के मतानुसार राजा विक्रमादित्य की मृत्यु के १३६ वर्ष बाद वलभी में श्वेताम्बर संघ की उत्पत्ति हुई। इस सम्बन्ध में एक दूसरो मान्यता भी प्रचलित है। उज्जैनी में चन्द्रगुप्त के राज्यकाल में भद्रबाहु के शिष्य विशाखाचार्य अपना संघ लेकर पुन्नाट चले गये, तथा रामिल्ल स्थूलभद्र और भद्राचार्य सिंधु देश में विहार कर गये। जब लोग उज्जैनी लौटकर आये तो वहां दुष्काल पड़ा हुआ था। संघ के आचार्य ने नग्नत्व ढांकने के लिए अर्धफालक धारण करने का आदेश दिया। लेकिन दुष्काल समाप्त होने के पश्चात् इसकी कोई आश्यकता न समझी गयी। फिर भी कुछ लोगों ने अर्धफालक का त्याग नहीं किया। तभी से जैन साधु वस्त्र धारण करने लगे।
दोनों ही सम्प्रदायों के अनुसार यह समय ईसा की प्रथम शताब्दी का अंतिम चरण बैठता है।
उपाध्याय के काल में गिरनार और शत्रुजय तीर्थों पर जब दिगम्बर और श्वेताम्बरों में परस्पर वाद-विवाद हुआ तो उस समय से श्वेताम्बर संघ की ओर से जैन प्रतिमाओं के पादमूल में वस्त्र का चिह्न बना देने का निश्चय किया गया ।
१. आवश्यक भाष्य १४५ आदि; आवश्यकचूर्णी पृ० ४२७ आदि ।
२. देवसेन, दर्शनसार, हरिषेण, बृहत्कथाकोष १३१; भट्टारक रत्नन्दि, भद्रबाहुचरित ।