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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज
[ च० खण्ड
( वर्तक - लाख की गोली ), अडोलिया ( गिल्ली ), तिन्दूस ( गेंद), पोत्तल्ल ( गुड़िया ), और साडोल्लय ( शाटक = वस्त्र ) का उल्लेख मिलता है । इसके अतिरिक्त शरपात ( धनुष ), गोरहग (बैल), घटिक ( छोटा घड़ा ), डिंडिम और चेलगोल ( कपड़े को गेंद) के नाम आते हैं। हाथी, घोड़ा रथ और बैल के खिलौनों से भी बच्चे खेला करते थे । ३
क्रीडा - उद्यान
प्रौढ़ों के क्रीड़ा करने के लिए अनेक उद्यान और आराम आदि होते थे । उद्यान में विट लोग विविध प्रकार के वस्त्र आदि धारण कर, हस्त आदि के अभिनयपूर्वक शृंगार काव्य का पठन करते, तथा सुन्दर वस्त्र और आभूषणों से अलंकृत स्त्री और पुरुष वहां क्रीड़ा करने जाते । श्रेष्ठपुत्र यहां अपने-अपने अश्वों, रथों, गोरथों, युग्यों और sari (यान विशेष ) पर आरूढ़ होकर इतस्ततः भ्रमण किया करते । * राजाओं के उद्यान अलग होते और वे अपने अन्तःपुर की रानियों को साथ लेकर क्रीड़ा के लिए वहाँ जाते ।" आराम में दंपति आदि माधवीलता के गृहों में क्रीड़ा किया करते थे । चम्पा के दो व्यापारियों का उल्लेख किया जा चुका है । वे देवदत्ता नाम की वेश्या के साथ सुभूमिभाग उद्यान में आकर आनन्दपूर्वक विहार करने लगे । राजा अपनो रानियों के साथ पाँसों ( बुक्कण्णय ) से खेलते । " खोटे पासों से जुआ खेलते थे । अष्टापद का उल्लेख मिलता है । इसके
१. ज्ञातृधर्मकथा १८, पृ० २०७ ।
२. सूत्रकृतांग ४.२.१३ आदि । आवश्यकचूर्णी पृ० २४६ में सुंकलिकडय नाम की क्रीड़ा का उल्लेख है । महावीर यह खेल बालकों के साथ खेल रहे थे । अन्य आमोद-प्रमोदों के लिए देखिए दीघनिकाय १, ब्रह्मजालसुत्त, पृ० ८; चूलवग्ग १.३.२१ पृ० २०; सुमंगलविलासिनी, १, पृ० ८४ आदि ।
३. आवश्यकचूर्णी पृ० ३९२ ।
४. बृहत्कल्पभाष्य १.३१७०-७१ ।
५. पिंड नियुक्ति २१४-१५ ।
६. राजप्रश्नीयटीका, पृ० ५ ।
७. निशीथचूर्णीपीठिका २५ । ८. आवश्यकचूर्णी पृ० ५६५ । ९. निशीथसूत्र १३.१२ ।