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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज
(२६) रिभित' नाट्य के अभिनय का प्रदर्शन | (२७) अंचितरिभित नाट्य के अभिनय का प्रदर्शन । (२८) आरभट ( नाट्यशास्त्र में उल्लेख ) नाट्य के अभिनय का प्रदर्शन ।
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[ च० खण्ड
(२९) भसोल नाट्यविधि ( नाट्यशास्त्र में भ्रमर ) के अभिनय का प्रदर्शन ।
(३०) आरभटभसोल नाटयविधि के अभिनय का प्रदर्शन ।
(३१) उत्पात, निपात, प्रवृत्त, संकुचित, प्रसारित, रइयारइय अथवा रियारिय ( रेचक - रेचित' जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में; नाट्यशास्त्र में रेक्करचित), भ्रान्त, सम्भ्रान्त क्रियाओं की नाटयविधि के अभिनय का प्रदर्शन ।
( ३२ ) इस नाट्यविधि में नट और नटी एक पंक्ति में खड़े होकर महावीर के पूर्वभव, उनका च्यवन, गर्भ-संहरण, जन्म, अभिषेक, बालक्रीड़ा, यौवनावस्था, कामभोग लीला, निष्क्रमण, तपश्चरण, ज्ञान की प्राप्ति, तीर्थ प्रवर्तन और परिनिर्वाण सम्बन्धी अभिनयों का प्रदर्शन करते हैं ।
अन्य नाट्यविधियां
इसके अतिरिक्त अन्य नाट्यविधियों का उल्लेख भी जैनसूत्रों में उपलब्ध होता है । ब्रह्मदत्त के चक्रवर्ती का पद प्राप्त करने के पश्चात्, किसी नट ने उन्हें मधुकरीगीत नामक नाट्यविधि का प्रदर्शन किया । " सौधर्म सभा में सौधर्म इन्द्र द्वारा सौदामिनी ( सोयामणि ) नाम के
१. मृदुपदसञ्चाररूपमिति वृद्धा, अथवा रेभितं कलस्वरेण गीतोद्गातृत्वं, अनेन वाचिकाभिनययुक्तं भारतीवृत्तिप्रधानं नाट्यं सूचितं, वही ।
२. आरभटाः - सोत्साहाः सुभटास्तेषामिदं आरभटं । अयमर्थः महाभटानां स्कंधास्फालनहृदयोल्वणनादिका या उद्धतवृत्तिस्तदभिनयं । अनेन आरभटी वृत्तिप्रधानं आंगिकाभिनयपूर्वकं नाटयं उक्तं, वही ।
३. भसः—शृंगारः पंक्तिरथन्यायेन शृङ्गाररस इत्यर्थः, तं अवर्तीति भसोस्तं रतिभावाभिनयेन लाति-गृह्णाति इति भसोलो नटस्ततो धर्मधर्मिणोरभेदोपचारात् भसोलो नाम नाट्यं, एतेन शृङ्गाररससात्विकभावः सूचितः, वही ।
४. रेचकैः -- भ्रमरिकाभिः रेचितं निष्पन्नं, वही ।
५. उत्तराध्ययनटीका १३, पृ० १९६ ।