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२७४ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [च० खण्ड
देवदत्ता गणिका चम्पा नगरी की देवदत्ता नामक गणिका का उल्लेख जैनसूत्रों में मिलता है । वह धन-सम्पन्न, ६४ कलाओं में निष्णात, २९ प्रकार से रमण करने वाली, २१ रतिगुणों से युक्त, ३२ पुरुषोपचार में कुशल, १८ देशी भाषाओं में विशारद, नवयौवना और श्रृंगार आदि से संपन्न थी। अपनी धजा के साथ वह कर्णीरथ पर सवार होकर चलती थी, एक हजार उसको फीस थी, राजा ने उसे छत्र और चामर प्रदान किये थे, तथा अनेक गणिकाओं की वह स्वामिनी थी। एक दिन नगर के सार्थवाहपुत्रों ने देवदत्ता के साथ उद्यान में जाकर विहार करने का विचार किया। उन्होंने अपने नौकरों को विपुल अशन, पान आदि लेकर नंदा पुष्करिणी पर पहुँच, एक सुन्दर मंडप बनाने का आदेश दिया। तत्पश्चात् सार्थवाह स्नान आदि से निवृत्त हो, सुंदर बैलों के रथ में सवार होकर देवदत्ता के घर पहुँचे । देवदत्ता ने आसन से उठकर उनका स्वागत किया। उसके बाद, वह वस्त्रादि से विभूषित हो
और यान में बैठ, चम्पा नगरी के बीच होती हुई नंदा पुष्करिणी पर आयो । यहां पर जलक्रीड़ा को गयी और फिर सब लोग मंडप में पहुँचे । वहां अशन, पान आदि का उपभोग करते हुए वे देवदत्ता के साथ विहार करने लगे । तत्पश्चात् देवदत्ता के हाथ में हाथ डालकर सुभूमिभाग नाम के उद्यान में गये, और वहां बने हुए कदलीगृह, लतागृह, आसनगृह, प्रेक्षणकगृह, प्रसाधनगृह, मोहनगृह, जालगृह, और कुसुमगृह आदि में भ्रमण करते हुए आनंदपूर्वक समय यापन करने लगे।
वैशिकशास्त्र वेश्याएं वैशिकशास्त्र की पंडित होती थीं। इस शास्त्र का अध्ययन
१. क्षेमेन्द्र ने कलाविलास ( वेश्यावृत्त ) में वेश, नृत्य, गीत, वक्रवीक्षण, कामपरिज्ञान, मित्रवंचन, पान, केलि, सुरतकला, आलिंगनांतर, चुम्बन, निर्लजावेगसंभ्रम, रुदित, मानसंक्षय, स्वेदभ्रमकंप, एकान्तप्रसाधन, नेत्रनिमीलन-निःसहनिस्पंद, मृतोपम, निजजननीकलह, सद्गृहगमनोत्सव, गौरवशैथिल्य, निष्कारणदोषभाषण, शूलकला, अभ्यंरकला, केशरंजन, कुटनीकला आदि ६४ कलाएं गिनायी हैं । तथा देखिए धम्मपद अट्ठकथा ४, पृ० १९७ ।
२. ज्ञातृधर्मकथा ३, पृ० ५९ आदि । ३. सूत्रकृतांगचूर्णी (पृ० १४०) में वैशिकतंत्र का उद्धरण दिया गया है