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— जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज अनुयायी बन गये। सूत्रकृतांग (२,७) में पार्श्वनाथ के शिष्य मेदार्यगोत्रीय उदक पेढालपुत्र का उल्लेख है जिन्होंने महावीर के प्रथम गणधर गौतम इन्द्रभूति का उपदेश सुनकर पांच महाव्रत स्वीकार किये। उत्तराध्ययन (२३) में पार्श्वनाथ के अनुयायी चतुर्दश पूर्वधारी कुमारश्रमण केशी और गौतम इन्द्रभूति का महत्वपूर्ण ऐतिहासिक संवाद उल्लिखित है। ___“पार्श्वनाथ ने चातुर्याम का उपदेश दिया है और महावीर ने पांच महाव्रतों का, पाश्र्वनाथ ने सचेल धर्म का प्ररूपण किया है और महावीर ने अचेल धर्म का-इस मतभेद का क्या कारण • हो सकता है ?” इसके उत्तर में गौतम गणधर ने बताया कि कुछ
लोगों के लिए धर्म का समझना कठिन होता है, कुछ के लिए पालना, . और कुछ के लिए धर्म का समझना और पालना दोनों सरल होते हैं,
अतएव भिन्न रुचिवाले शिष्यों के लिए भिन्न-भिन्न रूप से धर्म का प्रतिपादन किया गया है। ऐसी हालत में पार्श्व और महावीर दोनों महा-तपस्वियों का उद्देश्य एक ही समझना चाहिए, क्योंकि दोनों ही ज्ञान, दर्शन और चारित्र से मोक्ष की सिद्धि स्वीकार करते हैं; अन्तर इतना ही है कि पार्श्वनाथ चातुर्याम धर्म और महावीर पांच महाव्रतों को अंगीकार करते हैं। सचेल और अचेल धर्म के प्रतिपादन का तात्पर्य है कि बाह्य वेष साधन मात्र है, वास्तव में चित्त की शुद्धि मोक्ष का कारण है। ____ अपने साधु-जोवन में महावीर की अनेक पार्थापत्यों से भेंट हुई। ये साधु अष्टांग-महानिमित्त के पंडित थे। मुनिचन्द्र नामक पाश्र्वापत्य सारंभ और सपरिग्रह थे, और किसी कुम्भकार की शाला में रहा करते थे। नंदिषेण स्थविर पार्श्वनाथ के दूसरे शिष्य थे। पार्श्वनाथ की अनेक शिष्याओं का उल्लेख भी मिलता है। पार्श्वनाथ के स्थविरों के आचार-विचारों के अध्ययन से प्रतीत होता है कि ये लोग
१. दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुसार, पार्श्वनाथ के समय छेदोपस्थापना का उपदेश नहीं था, महावीर के समय से हुआ। ..
२. देवसेनसूरि के दर्शनसार के अनुसार पाश्वनाथ के तीर्थ में पिहिताश्रव के शिष्य बुद्धकीर्ति मुनि को बौद्धधर्म का प्रवर्तक कहा है । यहाँ मस्करीपूरन ( बौद्ध ग्रन्थों में मंखलि गोशाल और पूरमाकस्सप ) को भी पार्श्वनाथ के संघ के किसी गणी का शिष्य माना गया है।