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२५४ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [ च० खण्ड की प्रतिष्ठा भंग न हो। सामान्यतया वर के माता-पिता समान कुल वाले परिवार से ही कन्या ग्रहण करते थे। मेघकुमार ने समान वय, समान रूप, समान गुण और समान राजोचित पद वाली आठ राजकुमारियों से पाणिग्रहण किया। वैसे इस अपवाद के उदाहरण भी अनेक स्थानों पर मिलते हैं। उदाहरण के लिए, राजमंत्री तेयलिपुत्र ने एक सुनार की कन्या से, क्षत्रिय गजसुकुमाल ने ब्राह्मण की कन्या से, राजा जितशत्र ने चित्रकार की कन्या से," तथा राजकुमार ब्रह्मदत्त ने ब्राह्मण और वणिकों की कन्याओं से, पाणिग्रहण किया। विविध धर्मावलम्बियों में भी विवाह होते थे । वीतिमय का राजा उद्रायण तापसों का भक्त था और उसकी रानी प्रभावती श्रमणोपासिका थी। इसी तरह श्रमणोपासिका सुभद्रा का विवाह किसी बौद्धधर्मानुयायी के साथ हुआ था।
विवाह-शादी के मामले में प्रायः घर के बड़े-बूढ़े एक-दूसरे से सलाह-मशविरा करते, और फिर अपने निर्णय को अपनी सन्तान से कहते । लड़के का मौन विवाह की स्वीकृति का सूचक समझा जाता । चम्पा नगरी के व्यापारी जिनदत्त ने सागरदत्त की रूपवती कन्या को सोने की गेंद ( कणगतिन्दुसय) से खेलते हुए देखा। यह देखकर जिनदत्त अपने लड़के के साथ सागरदत्त की कन्या के विवाह का प्रस्ताव लेकर सागरदत्त के पास पहुँचा । उसके बाद जिनदत्त ने घर जाकर अपने लड़के के सामने यह प्रस्ताव रखा, और उसने अपने मौन से इस सम्बन्ध को अनुमति प्रदान की।
१. देखिए फिक, वही, पृ० ५१ आदि । २. ज्ञातृधर्मकथा १, पृ० २३ । ३. वही, १४, पृ० १४८ । ४. अन्तःकृद्दशा ३, पृ० १६। ५. उत्तराध्ययनटीका ९, पृ० १४१-अ आदि ।
६. वही, पृ० १८८-अ, १९२-अ। मनु के काल में अन्तर्जातीय विवाह आजकल की अपेक्षा बहुत अधिक लचीला था। अनुलोम विवाह ईसवी सन् की ८ वीं शताब्दी तक असाधारण नहीं हुए थे, अल्तेकर, वही, पृ० ८८ ।
७. आवश्यकचूर्णी, पृ० ३९९ । ८. दशवैकालिकचूर्णी, पृ० ४८-४९ । ९. ज्ञातृधर्मकथा १६, पृ० १६८ आदि; तथा अन्तःकृद्दशा ३, पृ० १६ ।