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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज
[च० खण्ड
ब्राह्मण जैनसूत्रों में साधारणतया ब्राह्मणों के प्रति अवगणना का भाव प्रदर्शित किया गया है, और यह दिखाया है कि वे लोग जैनधर्म के विरोधी थे। ब्राह्मणों के लिए धिज्जाइ (धिकजाति; वैसे यह शब्द द्विजाति से बना है ) शब्द का प्रयोग किया गया है। ब्राह्मणों को बभुक्षा-प्रधान कहा है। जैन सूत्रों में, जैसे कहा जा चुका है, ब्राह्मणों की अपेक्षा क्षत्रियों को श्रेष्ठता प्रदान की गयी है । जैनधर्म में कोई भी तीर्थंकर क्षत्रिय कुल को छोड़कर अन्य किसी कुल में उत्पन्न हुए नहीं बताये गये हैं। स्वयं महावीर भगवान पहले देवानन्दा नाम की ब्राह्मणी के गर्भ में अवतरित हुए, किन्तु इन्द्र ने उन्हें त्रिशला क्षत्रियाणी के गर्भ में परिवर्तित कर दिया ।
लेकिन ध्यान रखने की बात हैं कि यद्यपि जैन कथा-कहानियों में क्षत्रियों की अपेक्षा 'ब्राह्मणों को निम्न ठहराया गया है, फिर भी समाज में ब्राह्मणों का स्थान ऊँचा था। निशीथचूर्णी में कहा है कि ब्राह्मण स्वर्ग में देवता के रूप में निवास करते थे, प्रजापति ने इस पृथ्वी पर उन्हें देवता के रूप में सर्जन किया, अतएव जाति-मात्र से सम्पन्न इन ब्रह्म-बन्धुओं को दान देने से महान फल की प्राप्ति होती है। जैनसूत्रों में श्रमण (समण) और ब्राह्मण ( माहण ) शब्द का कितने ही स्थलों पर एक साथ प्रयोग किया गया है, इससे यहो सिद्ध
१. देखिए निशीथचूी पीठिका ४८७ की चूर्णी । आवश्यकचूर्णी पृ० ४६६ में उल्लेख है-एगो धिज्जाइश्रो पंडितमाणी सासणं खिसति ।
२. उत्तराध्ययनटीका ३, पृ०६२।।
३. कल्पसूत्र २.२२ श्रादि; आवश्यकचूर्णी, पृ० २३६ । बौद्धों को निदानकथा १, पृ०६५ में कहा है, बुद्ध खत्तिय और ब्राह्मण नाम को ऊँची जातियों में ही पैदा होते हैं, नीची जातियों में नहीं । यहाँ पर भी चार वर्णों में क्षत्रियों का नाम ब्राह्मणों से पहले लिया गया है; तथा ललितविस्तर पृ० २० श्रादि । तुलना कीजिए वाजसनेयसंहिता ३८.१६; कठक २८.५; यहाँ भी क्षत्रियों को ब्राह्मणों से श्रेष्ठ कहा है । वशिष्ठ (ब्राह्मण ) और विश्वामित्र (क्षत्रिय ) में किसकी जाति श्रेष्ठ है, इसके लिए देखिए डाक्टर जी० एस० घुर्ये, कास्ट एण्ड रेस इन इण्डिया, पृ० ६३ आदि । ___४. १३.४४२३ चूर्णी । पुराणों में ब्राह्मणों के पैर धोकर पीने का उल्लेख है, हजारा, पुराणिक रिकाड्स ऑन हिन्दू राइट्स एण्ड कस्टम्स, पृ० २५८ ।