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________________ १६० जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [तृ० खण्ड खरीदने गयो। उन दिनों कपास महंगी मिलती थी । वणिक ने एक रुपये की कपास दो बार तोलकर उसके पल्ले में डाल दी। अहोरनी ने समझा कि वणिक् ने दो रुपये की तोल कर दी है। वह गठरी बांधकर घर ले गयी । लेकिन वणिक् ने दो रुपये की जगह एक का ही माल दिया था, इसलिए वह बड़ा खुश हुआ। घर पहुंचकर उसने उस रुपये को सीवई, गुड़ तथा घी खरीदकर आनन्दपूर्वक भोजन किया। उधार लोग विश्वास के ऊपर उधार देते थे। उन दिनों बैंकों की व्यवस्था नहीं थी, इसलिए धन का अधिकांश भाग सोने आदि के रूप में संचित किया जाता, अथवा जमीन में गाड़कर (निहाणपउत्ति) रक्खा जाता था। लोग अपने मित्रों के पास भी धरोहर के रूप में अपना धन रख दिया करते थे, लेकिन उसकी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं थी। कितनी ही बार इस धन को लोग वापिस नहीं देते थे (नासावहार न्यासापहार )। ___ आवश्यकता पड़ने पर लोग उधार लेते थे। लेनदेन और साहूकारी और ईमानदारी का पेशा समझा जाता था । वाणियगाम का गृहपति आनन्द यह पेशा करता था, इसका उल्लेख किया जा चुका है । रुपया उधार लेते समय रुक्के-पर्चे लिखने का रिवाज था। लोग झूठे रुक्के पर्चे (कूडलेह) भो लिख दिया करते थे। यदि कोई वणिक् कर्ज चुका सकने में असमर्थ होता तो उसके घर पर एक मैली-कुचैली झंडी लगा दी जाती।" माप-तौल जैनसूत्रों में पांच प्रकार के मापों का उल्लेख मिलता है-मान, उन्मान, अवमान, गणिम और पतिमान । मान दो प्रकार का बताया १. उत्तराध्ययनटीका ४, पृ०८२ । २. उपासकदशा १, पृ०६। ३. आवश्यकटीका ( हरिभद्र ), पृ० ८२० । ४. वही; उपासकदशा पृ० १० । ५. निशीथभाष्य ११.३७०४ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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