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"लाइफ इन ऐशियेंट इंडिया ऐज डिपिक्टेड इन जैन कैनन्स" नाम की मेरी पी-एच० डी० की थीसिस सन् १९४७ में न्यू बुक कम्पनी लिमिटेड, बम्बई की ओर से प्रकाशित हुई थी। तभी से हितैषी मित्रों का आग्रह रहा है कि इस पुस्तक का हिन्दी रूपान्तर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया जाये। कई मित्रों ने इसका हिन्दीकरण करने की अनुमति भी चाही। लेकिन मैं यही सोचता रहा कि यदि कभी अपने बहुधंधी जीवन से अवकाश के क्षण मिल सके तो मैं स्वयं इस कार्य को हाथ में लू। उसका एक मुख्य कारण यह था कि अपनी थीसिस को अंग्रेजी में लिखते समय, मेरे बहुत कुछ नोट्स रह गये थे जिनका मनचाहा उपयोग न हो सका था। इसके अतिरिक्त, सांस्कृतिक सामग्री से भरपूर निशीथचूर्णी की साइक्लोस्टाइल की हुई प्रति का ही उपयोग में कर सका था, लेकिन अब वह उपाध्याय कवि अमर मुनि और मुनि कन्हैयालाल जी के परिश्रम से प्रकाशित हो गयी है। अन्य छेदसूत्रों और आवश्यकचूर्णी आदि जैसे महत्वपूर्ण ग्रन्थों का भी मैंने फिर से स्वाध्याय किया और प्राप्त सामग्री को प्रस्तुत पुस्तक में जोड़ दिया। अन्य स्थलों में भी कुछ आवश्यक परिवर्तन कर दिये गये हैं। वस्तुतः प्रस्तुत पुस्तक मेरी अंग्रेजी की उक्त पुस्तक का अविकल अनुवाद न समझी जाये; इसे एक स्वतंत्र पुस्तक का रूप देने का मैंने प्रयत्न किया है। इस पुस्तक में दिये उद्धरण मैंने फिर से उद्धृत पुस्तकों से मिलाये हैं, इससे बौद्ध सूत्रों आदि से तुलनात्मक उद्धरणों की संख्या में पहले की अपेक्षा वृद्धि ही हुई है ।
न्यू बुक कम्पनी के अधिकारियों ने मुझे अपनी पुस्तक का हिन्दी रूपान्तर प्रकाशित करने की अनुज्ञा दी, इसके लिए मैं उनका आभारी हूँ। चौखम्बा संस्थान के सर्वेसर्वा श्री कृष्णदासजी गुप्त की असीम प्रेरणा और असाधारण ममत्व का यह मधुर फल है कि यह पुस्तक उनके द्वारा प्रकाशित की जा रही है । बन्धुद्वय मोहनदास और विट्ठलदास के सम्बन्ध में क्या कहा जाये। उनके उत्साह और कार्यतत्परता के कारण ही इतना बड़ा प्रकाशन संस्थान दिनों-दिन उन्नति कर रहा है।
आशा है इस पुस्तक के प्रकाशन से हिन्दी पाठकों का ध्यान अब तक उपेक्षित पड़े हुए प्राकृत साहित्य की ओर आकर्षित होगा ।
१ जनवरी, १९६५ २८ शिवाजी पार्क, बंबई २८ )
जगदीशचन्द्र जैन