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चौथा अध्याय : सैन्य-व्यवस्था
१०५ - युद्ध अनेक प्रकार से लड़े जाते थे। जैनसूत्रों में युद्ध', नियुद्ध, महायुद्ध, महासंग्राम आदि अनेक युद्ध बताये गये हैं। राजा भरत और बाहुबलि के बीच दृष्टियुद्ध, वाक्युद्ध, बाहुयुद्ध, मुष्टियुद्ध और दण्डयद्ध होने का उल्लेख मिलता है। कूणिक और चेटक के बीच होनेवाले युद्ध के सम्बन्ध में पहले कहा जा चुका है। इस महासंग्राम में कूणिक की ओर से गरुडव्यूह और चेटक की ओर से शकटव्यूह रचा गया । फिर दोनों में महाशिलाकंटक और रथमुशल नामक युद्ध हुए। कहते हैं इस महासंग्राम में लाखों सैनिकों का विध्वंस हुआ। व्यूहरचना में चक्रव्यूह, दण्डव्यूह और सूचिव्यूह का प्रयोग किया जाता था।"
युद्ध आरम्भ करने के पूर्व आक्रमणकारी राजा शत्रु के नगर को चारों ओर से घेर लेता था। फिर भी यदि शत्रु आत्मसमर्पण के लिए तैयार न हो तो दोनों पक्षों में युद्ध होने लगता। राजा कूणिक द्वारा बारबार दूत भेजने पर भी जब चेटक हल्ल और बेहल्ल को वापिस भेजने को तैयार न हुआ तो विदेह जनपद के देशप्रान्त पर स्कंधावार-निवेशन
१. निशीशचूर्णी १२.४१३३ की चूर्णी में युद्ध और नियुद्ध का निम्नलिखित लक्षण किया है-अड्डियपव्वड्डियादिकारणेहिं जुद्धं । सव्वसन्धिविक्खोहणं णिजुद्धं । पुव्वं जुद्धण जुज्जिउं पच्छा संधीश्रो विक्खोभिज्जति जत्थ तं जुद्धं णिजुद्धं ।
२. निशीथसूत्र १२.२७ में डिंब, डमर, खार, वेर, महायुद्ध, महासंग्राम, कलह और बोल का उल्लेख है। अर्थशास्त्र २.३३.४६-५१.११ में श्राठ प्रकार के युद्धों का उल्लेख है-निम्नयुद्ध, स्थलयुद्ध, प्रकाशयुद्ध, कूटयुद्ध, खनकयुद्ध, श्राकाशयुद्ध, दिवायुद्ध और रात्रियुद्ध ।
३. श्रावश्यकचूर्णी, पृ० २१० । कल्पसत्र ७, पृ० २०६-अ टीका।
४. निरयावलियानो १, पृ. २८ । कौटिल्य ने भी अर्थशास्त्र १०.६.१५८१५६.१२,२४ में शकटव्यूह और गरुडव्यूह का उल्लेख किया है। तथा देखिए मनुस्मृति ५.१८७ आदि; महाभारत ६.५६, ७५; दाते, द आर्ट ऑव वार इन ऐंशियेंट इण्डिया, पृ० ७२ श्रादि ।
५. श्रौपपातिक ४०, पृ० १८६; तथा देखिए प्रश्नव्याकरण ३, पृ० ४४ । राजा प्रद्योत और दुमुख के युद्ध में गरुड़व्यूह और सागरव्यूह रचे जाने का उल्लेख है, उत्तराध्ययनटीका ६, पृ० १३५-६ ।