________________
२२
न्यायविनिश्चयविवरण
स्वीकार करनेमें उन्हें क्या बाधा है ? अतद् व्यावृत्ति या बुद्धिगत अभेद प्रतिविम्ब रूप अपोहका निर्वाह भी सादृश्यके माने बिना नहीं हो सकता । अतः सदृशपरिणाम रूप ही सामान्य मानना चाहिए। यह स्वलक्षणकी तरह वस्तु-भूत परमार्थसत् है संवृतिसत् नहीं। शब्द और विकल्पज्ञान इसी सामान्यसे विशिष्ट सामान्यविशेषात्मक वस्तुको विषय करते हैं, न केवल सामान्यात्मक और न केवल विशेषा त्मकको ही। शब्दको सुनकर हमें 'यह गौ है' ऐसा विध्यात्मक बोध होता है न कि 'अगौ नहीं है। ऐसा निषेधात्मक । प्रत्येक पदार्थ सदृशा-सदृशात्मक है। एक द्रव्यव्यक्तिका अपनी पर्यों में अनुगत प्रत्यय ऊर्ध्वतासामान्यसे होता है तथा विभिन्न द्रव्यों में अनुगतप्रत्यय तिर्यक् सामान्यसे । ऊर्ध्वतासामान्य वास्तविक अभेद रूप है जब कि तिर्यक् सामान्य सादृश्यरूप । इसमें अभेद व्यवहार उपचारसे ही होता है। तात्पर्य यह कि वस्तुकी स्थिति जब स्वयं सामान्यविशेषात्मक है तब प्रत्यक्षकी तरह अनुमान भी उभयात्मक अर्थको ही विषय करता है न कि केवल सामान्यको। प्रमेयद्वविध्यसे प्रमाणदैविध्यकी कल्पना भी उचित नहीं है क्योंकि प्रमेयमें सामान्य और विशेष रूपसे विध्य है ही नहीं। वह तो एक ही प्रकारका है। अतः प्रमाणभेदका आधार प्रमेयभेद न होकर प्रतिभासभेद ही है।
सामान्यविशेषात्मक या अनेकान्तात्मक पदार्थ में ही साध्य-साधनभावकी व्यवस्था होती है। केवल भेदात्मक या अभेदात्मक पदार्थ न तो साध्य बन सकते हैं और न साधन ।
दृष्टान्त-जैसा कि पहले लिखा जा चुका है कि अनुमानके आवश्यक अङ्ग दो ही हैं-प्रतिज्ञा और हेतु । पर शिष्योंके अनुग्रहके लिए दृष्टान्त आदिकी उपयोगितासे इन्कार नहीं किया जा सकता। साध्य और साधनके अविनाभाव सम्बन्धका ज्ञान जहाँ होता है उस प्रदेशको दृष्टान्त कहते हैं और दृष्टान्तके वचनको उदाहरण । चूंकि व्याप्ति, अन्वय और व्यतिरेक या साधर्म्य या वैधर्म्य रूपसे दो प्रकार की होती है अतः दृष्टान्त भी साधर्म्यदृष्टान्त और वैधर्म्यदृष्टान्त इस तरह दो प्रकारके हो जाते हैं। वस्तुतः जब दृष्टान्त अनुमानका नियत अवयव नहीं है तब प्रत्येक अनुमानमें दोनों दृष्टान्त या किसी एक दृष्टान्तकी उपलब्धि हो ही, ऐसा नियम नहीं किया जा सकता। इसीलिए 'सब पदार्थ अनेकान्तास्मक हैं सत् होनेसे इस अनुमानप्रयोगमें सबको पक्ष करनेके कारण साधर्म्य दृष्टान्त तो है ही नहीं पर वैधर्म्यदृष्टान्त भी खरविषाण आदि बुद्धिकल्पित ही बताये जाते हैं। केवल व्यतिरेकी अनुमानमें यद्यपि व्यतिरेक दृष्टान्त वस्तुभूत उपलब्ध हो जाता है पर अन्वयदृष्टान्त नहीं ही मिलता।
'सब क्षणिक हैं सत् होनेसे' इस अनुमानमें यद्यपि सबको पक्ष करनेके कारण पक्षसे भिन्न किसी दृष्टान्तका अस्तित्व नहीं है किन्तु पक्षान्तर्गत बिजली आदि प्रसिद्ध क्षणिक पदार्थोंको शिष्योंको समझानेके लिए दृष्टान्त मान लिया जाता है।
___ दृष्टान्त न होकर भी जो दृष्टान्तकी तरह मालूम पड़े वह दृष्टान्ताभास है। इसके साध्यविकल, साधनविकल, उभयविकल आदि १८ भेद हो जाते हैं । नौ अन्धय व्याप्तिमें तथा नौ व्यतिरेकव्याप्तिमें। अन्वयच्याप्तिके ९ दृष्टान्ताभास इस प्रकार हैं
१ साध्यविकल-शब्द नित्य है क्योंकि वह अमूर्त है' इस अनुमानमें कर्म-क्रियाका दृष्टान्त साध्यविकल है । क्योंकि वह नित्य न होकर अनित्य है।
२ साधनविकल-उक्त अनुमानमें परमाणुका दृष्टान्त साधन विकल है क्योंकि परमाणु मूर्तिक होता है।
३ उभयविकल-उक्त अनुमानमें घटका दृष्टान्त उभयविकल है क्योंकि घट मूर्तिक है और अनित्य भी।
४ सन्दिग्धसाध्य-'सुगत रागादिवाले हैं क्योंकि वे कृतक हैं। इस अनुमानमें रथ्यापुरुषका दृष्टान्त साध्यविकल है क्योंकि उसमें रागादिका सद्भाव या अभाव अनिश्चित है। सराग भी वीतरागकी तरह चेष्टाएँ करते देखे जाते हैं अतः चेष्टाओंसे वीतरागता या सरागताका सुनिश्चय नहीं किया जा सकता।