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श्री अमितगति श्रावकाचार
भावार्थ - ऐसें ध्यानका फल मुक्ति अवस्था कही ॥ ११४ ॥
सवैया तेईसा ।
ध्यानस्वरूप को जिनराज व्रतादि समाजसमेत विचार,
चित्त वसै परमारथमें सब रागविरोध विकार विडारै । सो सुरपूजितपादसरोज अनंतगुणातम रूपनिहारै
मत्त रहै सुखवारिधमें नहिं जन्म भवावलिमें फिर धारै ॥
ऐसें श्री श्रमितगति श्राचार्यविरचित श्रावकाचारविषैपंद्रहमां परिच्छेद समाप्त भया ।