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________________ ३८२] श्री अमितगति श्रावकाचार सो महात्मा तिस शरीरकुट्टीके नाशके अथि शीघ्र ही यत्न करै है, मोक्ष होनेका उपाय करै है ऐसा जानना ॥१०७॥ समाधिविध्वंसविधौ पटिष्ठं, न जातु लोकव्यवहारपाशम् । करोति यो निष्पृहचित्तवृत्तिः, प्रवर्तते ध्यानमनुष्य शुद्धम् ॥१०॥ अर्थ-जो पुरुष एकाग्रचित्तके नाश करने में प्रवीण जो निंद्य लोकव्यवहार ताहि कदाचित् नाहीं करै है अर वांछारहित है चित्तकी परणति जाकी ऐसे पुरुषके निर्मल ध्यान प्रवर्ते है ॥१०८।। विधीयते ध्यानमवेक्षमाणैर्यद्ध तबोधैरिह लोककार्यम् रौद्रं तदात्तच वदन्ति सन्तः, कर्मद् भच्छेदनबद्धकक्षाः ।१०। _अर्थ-जो इस लोकसम्बन्धी कार्यकौं वांछते जे अज्ञानी पुरुष तिनकरि ध्यान करिए है तौ ध्यानकौं सन्तपुरुष रौद्र या आर्त कहै है । कैसे है संत पूरुष कर्मवृक्षके छेदनेकौं बांधी है कमर जिननें ॥१०॥ सांसारिक सौख्यमवाप्तुकामानं विधेयं न विमोक्षकारि । न कर्षणं सस्यविधायि लोके, पलाललाभाय करोति कोऽपि ।११०॥ अर्थ-मोक्षका कर्ता जो ध्यान सो संसारके सुखकी वांछा करि करना योग्य नाहीं, जातें लोकमैं धान्यकी उपजावनेवाली जो खेती सो पलालके लाभके अर्थि कोई भी करै नाहीं। धान्यके अर्थि जो खेती करेगा ताकै पलाल तौ स्वयमेव ही होयगा। तैसें मोक्षके अथि जो ध्यान करै है ताकै संसारसुख तौ यावत् शुभ राग है तावत् स्वयमेव होय है । बहुरि विषय सुखकी वांछा करै तौ उलटा रोद्रध्यान होय संसारसुखकी वांछा सहित ध्यान करना युक्त नाहीं ॥११०॥ अभ्यस्यमानं बहुधा स्थिरत्वं, यथैति दुर्योधमपीह शास्त्रम् । नूनं तथा ध्यानमपीति मत्वा, ध्यानं सदाऽभ्यस्यतु मोक्त कामः ॥१११॥ पर्ण-जैसे दुःखतें है जानना जाका ऐसा कठिन शास्त्र भी
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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