________________
३६२ ]
श्री अमितगति श्रावकाचार
१ कहह
ध्यानं विधित्सता ज्ञेय, ध्याता ध्येय विधिः फलम् । विधेयानि प्रसिद्धयंति, सामग्रीतो विना न हि ॥२३ ।
अर्थ-ध्यान करनेकौं इच्छता जो पुरुष ताकरि ध्याता कहिए ध्यानका करनेवाला अर ध्येय कहिए ध्यावने योग्य वस्तु विधि कहिए ध्यानका विधान अर ध्यानका फल ये जानने योग्य हैं, ते सामग्री विना सिद्ध होय नाहीं। ध्याता आदिका स्वरूप जानें तो ध्यानकी सिद्धि होय ॥२३॥
आगै ध्याताका स्वरूप कहैं हैंनिसर्गमार्दवोपेतो, निष्कषायो जितेंद्रियः । निममो निरहंकारः, पराजितपरीषहः ॥२४॥ हेयोपादेयतत्वज्ञो, लोकाचारपराङमुखः । विरक्तः कामभोगेषु, भवभ्रमणभीलुकः ॥२५॥ लाभेऽ नाभे सुखे दुःखे, शत्रौ मित्रे प्रियेऽप्रिये । मानापमानयोस्तुल्यो मृत्युजीवितयोरपि ॥२६॥ निरालस्यो निरुद्व गो जितनिद्रो जितासनः । सर्वव्रतकृतान्यासः सन्तुष्टो निष्परिग्रहः ॥२७॥ सम्यक्त्कालंकृतः शांतो रम्यारम्यनिरुत्सुकः । निर्भयो भाक्तिकः श्राद्धो, वीरो वैरंगिकोऽशठः ॥२८॥ निनिदानो निरापेक्षो विभंक्षुर्देहपंजरम् । भव्यः प्रशस्यते ध्याता यियासुः पदमव्ययम् ॥२६॥
अर्थ-स्वभाव करि ही कोमल परिणाम करि युक्त होय, कषायरहित होय (तीव्र कषायो न होय) अर जीते हैं इद्रिय जानें एसा होय, बहरि परद्रव्य निमैं ममकार २ हित हाय, अहंकार रहित होय (परद्रव्य मेरे हैं ऐसी बुद्धि सो तो ममकार कहिये, पर हैं सो ऐसो बुद्धिकौं अहंकार कहिए इन करि रहित होय) अर जीते हैं क्षुधादि परिषह जानें ऐसा होय ॥२४॥