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________________ ३४६ ] श्री अमितगति श्रावकाचार -- अर्थ – मन वचन कायका रोकनेवाला अर सम्यग्दृष्टि अर नाश किये हैं कषाय वैरी जानें अर हिंषादिकतें विरक्त अर यत्नाचारमै तत्पर ऐसा जो पुरुष ताकै समस्त नवीन कर्म रुकै है । भावार्थ - मिथ्यात्वादिके प्रतिपक्षी जे सम्यक्त्वादि भाव तिनकरि संवर होय है ॥५०॥ धर्मधरस्य परीषहजेतु-, वृत्तवतः समितस्य सुगुप्तेः । श्रागमवासितमानसवृत्तेः, संगतिरस्ति न कर्मरजोभिः ॥ ५१ ॥ अर्थ – उत्तम क्षमादि दश प्रकार धर्मका धरनेवाला अर क्षुधादि परीषनिका जीतने वाला अर सामायिकादि चारित्रका धारी अर यत्नाचार रूप समितिनिकरि मुक्त अर भले प्रकार योगनिका निग्रहरूप है गुप्ति जाकै ऐसा जो पुरुष ताकै कर्मरूपी रजनी करि संगति नाहीं होय है । भावार्थ - इनके होतसंतें द्रश्यसंवर होय है, ऐसा जानना ॥ ५१ ॥ दर्शनबोधचरित्रतपोभिश्चेतसिकल्मषमेति न जुष्टे । शूरतरैः पुरुषैः कृतरक्षे, शत्रुबलं विशति क्व पुरे हि ॥ ५२ ॥ अर्थ – दर्शन ज्ञान चारित्र तप इनकरि सहित जो चित्त ता विणें पापकर्म नाहीं प्राप्त होय है ! जैसें शूरवीर पुरुषनिकरि करी है रक्षा जाकी ऐसा जो नगर ताविषें शत्रुकी सेना कहां प्रवेश करें, अपितु नाहीं करें है ।। ५२ ।। पातकमाश्रवति स्थिररूपं, संभृतिमात्मवतां न यतीनाम् । वर्मंधरान नरान् रणरंगे, क्वापि भिनति शिलीमुखजालम् ॥५३॥ अर्थ - स्थिररूप आत्माका अनुभव करते जे आत्मज्ञानी यतीश्वर तिनके कर्म नही आश्रवै है । जैसें रणभूमि विषे वक्त बकतरके धरनेवाले पुरुष तिनहि वाणनिका समूह कहू भी भेदे नाहीं ॥ ५३ ॥ कामकषायहृषीकनिरोधं, यो विद्धाति परैरसुसाध्यम् । केवल लोकविलोकित लोको, याति च मुक्तिपुरीं दुखापाम् ||५४|| अर्थ – ज्यो पुरुष काम अर कषाय अर इन्द्रिय इनिका निरोध कर है सो पुरुष मुक्तिपुरीकौं प्राप्त होय है, कैसा है कामादिकका निरोध और सामान्य पुरुषनि करि असाध्य है । बहुरि कैसा है वह पुरुष केवलज्ञान
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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