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द्वितीय परिच्छेद
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छप्पय
दुर्लभनरभव पाय अन्य कारज तज दीजे,
. होय विषयतें विमुख सुगुरुवचनामृत पीजे । मिथ्याभाव निवार सार जिनवर्म धार उर,
इन्द्रादि पद पाय धर्मतें होय जगतगुर ॥ कल्याणकार कलिमलहरन, धर्म परम उत्तम सरन ।
जिनराज अमितगति कथित, तसु भागचन्द बंदित चरन ॥ ऐसे श्री अमितगति प्राचार्यकृत श्रावकाचारवि
पहला परिच्छेद समाप्त भया ।
द्वितीय परिच्छेद
मिथ्यात्वं सर्वथा हेयं, धर्म बद्धं यता सता।
विरोधो हि तयोढिं, मत्युजीवितयोरिव ॥१॥ ..... -धर्मकों बढावता जो सत्पुरुष ताकरि मिथ्यात्व सर्व प्रकार त्यागना योग्य है, जातें मिथ्यात्व अर धर्म इन दोउनिका मरन अर जीवनकी ज्यों अतिशय करि बड़ा विरोध है ॥१॥
संयमा नियमाः सर्वे, नाश्यते तेन पावनाः । ...क्षयकालानलेनेव, पादपाः फलशालिनः ॥२॥
... पर्ण-जैसें प्रलयाग्नि करि फलनि करि शोभित जे वृक्ष हैं ते नाशक प्राप्त होय हैं तैसें तिस मिथ्यात्व करि पवित्र सयंम नियम सर्व नाशकौं प्राप्त होय हैं ॥२॥