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त्रयोदश परिच्छेद
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अनायतन कहिए कुदेवादिकका त्याग जाने अर अन्यमती करि विमोहित है अर जिनशासनकी विराधना करि हीन है अर जिनधर्मका बढ़ावनेवाला है | कैसा है सम्यग्दर्शन मोक्षमहलका सोपान है अर पापके नाश करने में समर्थ है अर ज्ञानचारित्रका कारण है ।
भावार्थ- - सम्यक्त होतें सम्यग्ज्ञान सम्यक्चारित्र नाम पावै ऐसा हैं ।। ३-४-५॥
न निरस्यति सम्यक्त, जिनशासनभावितः । गृहीतं वन्हिसंतप्तो, लोहपंड इवोदकम् ॥६॥
अर्थ - जिनशासन करि भावित कहिए जानें जिनागम भाया है सो पुरुष ग्रहण किया जो सम्यक्त ताहि न छोड़े है, जैसें अग्निकरि तत जो लोहका पिंड सो जलकौं न छोड़े है || ६ ||
दर्शनज्ञानचारित्रतपः सुविनयं परम् । करोति परमश्रद्धस्तितीर्षु भववारिधिम् ॥७॥ जिनेशानां विमुक्तानामाचार्याणां विपश्चिताम् । साधूनां जिनचैत्यानां चिनराद्धांतवेदिनाम् ॥८॥ कर्त्तव्या महती भक्तिः सपर्या गुणकीर्त्तनम् । अपवादतिरस्कारः संभ्रमः शुभदृष्टिता ॥६॥ अर्थ - उत्कृष्ट हे श्रद्धान जाकैअर संसार - समुद्रकौं तिरवेकी है इच्छा जाकं ऐसा सम्यक्ती पुरुष दर्शन ज्ञान चारित्र तप इनिमैं विनय करें है । जिनदेव निकी तथा विमुक्त कहिए सिद्धभगवाननिकी तथा आचार्य निकी नथा जैनश्रुतके पाठकनिकी तथा साधूनिकी तथा जिन प्रतिमानिकी तथा जैन सिद्धांतके ज्ञातानिकी बड़ी भक्ति करनी, पूजा करनी, गुण गावना, अपवाद दूर करना, हर्ष करना, शुभ दृष्टिपना करना यह विनय 119-5-211
श्रागमाध्ययनं कार्यं कृतकालादिशुद्धिमा । विनयारूढिचित्तेन, बहुमानविधायिना ॥१०॥