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________________ २६८] श्री अमितगति श्रावकाचार श्री अनि न वियोगः प्रियः सार्द्धन संयोगोऽप्रियैः सह। न व्रतं न तपस्तेषां न वैरं न पराभवः ॥७॥ अर्थ-तिन भोगभूमियानके इष्टपदार्थ न करि साथ वियोग नाहीं, अर अनिष्ट वस्तुनि सहित संयोगता नाहीं, अर तिनके व्रत नाहीं तप नाहीं वैर नाहीं अनादर नाहीं ॥७५।। यतः स्वस्वामिसम्बन्धस्तेषां नास्ति कदाचन । परछन्दानुवत्तित्वं ततस्तेषां कुतस्तनम् ॥७६॥ अर्थ-जाते तिन भोगभूमियानके स्वस्वामि कहिये सेवक ईश्वरपनेंका सम्बन्ध कदाचित् नाहीं तातै पराधीन प्रवर्तना तिनकै काहेका होय ॥७६॥ नाऽपूर्णे समये सर्वे ते म्रियन्ते कदाचन । रचयन्ति न पैशून्य सुखसागरमध्यगाः ॥७७॥ अर्थ--ते सर्व भोगभूमिया आयुके अपूर्ण काल विष कदाच न मर है, अर सुखसमुद्रके मध्य प्राप्त भये ते ईर्षा भावकौं नाहीं करें हैं ॥७७॥ प्रायासेन विना भोगी नीरोगीभूतविग्रहः । क्षुतेन पुरुषस्तत्र म्रियते जूभयांगना ॥७॥ अर्थ-खेद विना भोगनि करि सहित अर रोगरहित है शरीर जाका ऐसा भोगभूमिका पुरुष तौ छींक करि मरे है अर जंभाई करि स्त्री मर है ॥७॥ . ते जायन्ते कलालापा मकरध्वजसंनिभाः। सर्वे भोगक्षमाः रम्याविनानां सप्त सप्तकैः ॥७॥
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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