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________________ एकादश परिच्छेद [२६७ मददैन्यश्रमायासक्रोधलोभमदक्लमाः । मुक्तानामिव नो तेषां नाप्यन्यत्र गमागमः ॥७१॥ अर्थ-मद दीनता श्रम प्रयास क्रोध लोभ मद क्लेश ये सर्व मुक्त आत्मानकी ज्यौं तिनके नाहीं अर और जायगा तिनका गमनागमन नाहीं । इहां मुक्त आत्माका दृष्टांत दिया सो प्रगटपनें मदादिकके कार्य भोगभूमिमैं नाहीं तातै उपचारतें कह्या है, सर्वथा वीतराग मुक्त आत्माकी ज्यौं न जान लेना ॥७१॥ अयमेव विशेषोऽस्ति देवेभ्यो भोगभोगिनाम् । यत्त यांति मृता नाकं देवास्तिर्यङनरत्वयोः ॥७२॥ अर्थ-देवनितें भोगभूमियानका यही भेद है जातें भोगभूमिया मरे भये स्वर्गकौं प्राप्त होय हैं अर देव हैं ते तिर्यंच मनुष्य गतिकौं प्राप्त होय है ॥७२॥ यतो मन्दकषायास्ते ततो यांति त्रिविष्टपम् । उक्त तीवकषायत्वं दुर्गतेः कारणं परम् ॥७२॥ अर्थ-जाकारणते ते मन्द कषाय हैं ता कारणते ते स्वर्गकौं प्राप्त होय हैं। तोत्र कषायपना है सो केवल दुर्गतिका कारण कह्या है ॥७३॥ दीयन्ते चितिता भोगा येषां कल्पमही हैः । दशांगः कः सुखं तेषां शक्तो वर्णयितुं गिरा ॥७४।। अर्थ-जिन भोगभूमियानकौं दशभेदरूप कल्पवृक्षनि करि वांछित भोग दीजिए है तिन भोगभूमियानके सुखकौं वाणी करि वर्णन करनेकौं कौन समर्थ है ॥७४॥
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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