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________________ प्रथम परिच्छेद [ ११ निहन्यते यत्र शरीरवर्गो, निपीयते मद्यमुपास्यते स्त्री । बोभुज्यते मांसमनर्थमूलं धर्मस्य मात्रापि न तत्र नूनं ॥ ३३ ॥ " अर्थ - जिस विषें जीवनिके समूह हनिए हैं, अर मदिरा पीइये है, अर परस्त्री भोगिए है, अर अनर्थका मूल मांस भखिये है, तहां निश्चय करि धर्मका अंश नही है ||३३|| बधादयः कल्मष हेतवो ये न सेवितास्ते वितरंति धर्मम् । न कोद्रवाः क्वापि वसुन्धरायां, निधीयमाना जनयंति शालान् ||३४|| अर्थ – जे पापके कारण हिंसादिक ते सेये सन्ते धर्मकों न विस्तरे हैं। जैसे कोंदू पृथ्वीवेषं धरे सन्ते कहूं भी धान्य न उपजावें हैं तैसें ॥३४॥ हिंसा परस्त्रीमधुमांस सेवां कुर्वति धर्माय विबुद्धयो ये । पीयूषलाभाय विवर्द्धयते, विषद्र मांस्ते विविधैरुपायैः ॥ ३५ ॥ अर्थ – जे दुर्बुद्धि धर्मके अर्थ हिंसा परस्त्री मधु मांसका सेवन करे हैं ते अमृतके अर्थि नाना उपायनि करि विषवृक्षनिको बढ़ावें हैं ॥ ३५ ॥ यैर्मद्यमांसागिबधादयोर्येनिर्माणयुक्ताः कुशलाय शास्त्रैः । श्राकर्णनीयानि न तानि दक्षैः, शत्रूदितानीव वचांसि जातु । ३६ । - अर्थ – जिन शास्त्रनि करि यहु मद्य मांस जीवहिंसादिक करि रचेभये मंगलके अर्थ कहे, ते शास्त्र शत्रूके वचननिकी ज्यों पंडितनि करि कदाचित् सुनना योग्य नांही ॥ ३६॥ पठति शृण्वंति वदंति भक्त्या, स्तुवंति रक्षति नयंति वृद्धि | ये तानि शास्त्राण्यनुमन्यमानास्ते यांति सर्वेऽपि कुयोनिमज्ञाः ॥ ३७॥ अर्थ - जे पुरुष तीन पापरूप शास्त्रनिकों नमते संते भक्ति करि
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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