SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दशम परिच्छेद [२३१ अर्थ-तत्वज्ञानीनतें तीनप्रकार फलके कारणतें जानकरि उत्तम मध्यम जघन्य भेदकरि क्षेत्रकी ज्यों पात्र तीन प्रकार कह्या है ॥२॥ उत्तममुत्तमगुणतो मध्यमगुणतोऽथ मध्यमं पात्रम् । विज्ञेयं बुद्धिमता जघन्यगुणतो जघन्यं च ॥३॥ अर्थ-बुद्धिमान पुरुषकरि उत्तम गुणतें उत्तमपात्र जानना योग्य है, बहुरि मध्यमगुणतें मध्यम पात्र जानना योग्य है, अर जघन्य गुणतें जघन्य पात्र जानना योग्य है ॥३॥ तत्रोत्तम तपस्वी विरताविरतश्च मध्यमं ज्ञेयम् । सम्यग्दर्शनभूषः प्राणी पात्रं जघन्यं च ॥४॥ अर्थ-तहां तपस्वी साधु तो उत्तम पात्र जानना योग्य है अर विरतावरित श्रावक मध्यम पात्र जानना योग्य है, अर सन्यग्दर्शन युक्त प्राणी है सो जघन्य पात्र जानना ॥४॥ __आगें उत्तम पात्र का स्वरूप कहैं हैं--- जीवगुणमार्गणविधि विधानतो यो विवुद्धय निःशेषम् । रक्षति जीवनिकायं सवितेव परोपकारपरः ॥५॥ पथ्यं तथ्यं श्रव्यं वचनं हृदयंगमं गुणगरिष्ठम् । यो ते हितकारी परमानसतापतो भीतः ॥६॥ निर्माल्पकमिव मत्वा पर वित्तं यस्त्रिधापि नाऽऽदत्त । दन्तांतरशोधनमपि पतितं दृष्ट्वाप्यदत्तमतिः ॥७॥ तिर्गङ मानवदेवाचेतनभेदां चतुर्विधां योषाम् । परिहरति यः स्थिरात्मा मारीमिव सर्वथा घोराम् ॥८॥ त्रिविधं चेतनजातं संगं चेतनमचेतनं त्यक्त्वा । यो नाऽऽदत्ते भूयो वांतमिवान्न त्रिधा धीरः ॥६॥ त्रिविधालंवनशुद्धिः प्रासुकमार्गेण यो दयाधारः । युगमात्रांतरदृष्टिः परिहरमाणोंऽगिनो याति ॥१०॥
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy