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अष्टम परिच्छेद
गुर्वादेरग्रतो भूत्वा मूर्द्धापरिक्रमभ्रमी । द्वात्रिंशदिति मोक्तव्या दोषा वंदनकारिणाम् ॥ ८६ ॥
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अर्थ – समस्त आदर रहित क्रियाकर्म करना सो अनादृत दोष है । १ - बहुरि जात्यादि अष्टमदके वशीभूत भया वंदना करें सो स्तब्ध दोष है, २ - बहुरि प्रतीक्ष्य कहिए देखकर अंगनकौं पीडे दाबै सो पीडित दोष है, ३ - बहुरि डाढ़ीके वा मूछके सिरके वालनकौं मरोड सो कुचित दोष है, ४ – बहुरि डोलामैं बैठेकी ज्यों समस्त शरीर चलावतासंता वेदना करै सो दोलायित दोष है, ५ - बहुरि आगे पसवाडेत पीछेतैं कछवेकी ज्यौं तरफसैं चेष्टा करें अंग संकोच वा विस्तारै सो कच्छपैं गित दोष हे, ६ - बहुरि हाथके अंगूठाकौं मस्तक विषै अंकुशकी ज्यों लगाय करके बाकी ज्यों मस्तककौं नीचा ऊँचा करै सो अंकुशित दोष है, ७ - बहुरि मच्छकी ज्यौं उछलकर औरनके आगे पडै वा मछलीकी ज्यौं तडफडावै सो मत्स्योद्वर्त्त दोष हैं, 5बहुरि द्रविड देशके पुरुषकी विनती समान वक्षस्थलपैं दोऊ हाथ करके वंदना करै सो द्राविडी विज्ञप्ति दोष है तथा याहीका नाम वेदिकाबद्ध दोष है, ह - बहुरि आचार्यादिक पूज्य पुरुषनकी विराधना करता वंदना करै सो आसादना दोष है, १० - बहुरि गुरु आदिक के भयतें वंदना करै सो विभीत दोष है, ११ - बहुरि जो मरणादिक सात भयकरि भयभीत भया वंदना करें सो भय दोष है, १२ - बहुरि परिवारऋद्धि करि गर्वित भया संता वंदना करै सो ऋद्धिगौरव दोष है, १३ - बहुरि साधर्मीन के समाजतैं बाहिर होय करि मानौं लज्जातें किंचित् आकुल भया वंदना करै सो लज्जित दोष है, १४ - बहुरि गुरुकै प्रतिकूल होय करि वंदना करें सो प्रतिकूल दोष है, १५ - बहुरि वचनालाप आदि करता संता वंदना करै सो शब्ददोष है, १६ - बहुरि काहूकै ऊपर क्रोधरूप भया तामैं मन वचन काय करि क्षमा न करायकै वंदना करै सो प्रदुष्ट दोष है, १७ - बहुरि कोई जाणैगा ऐसें