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सप्तम परिच्छेद
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अर्थ--गतोपयोग कहिए विना देखे वा विना प्रतिलेखन करे भूमिमै मलमूत्र तजना वा अहंतादिकनिकी पूजाके उपकरण गन्धमाल्यादिक वा आपके औढना आदिके अर्थ वस्त्रादिक इनका ग्रहण करना, बहुरि सांथरा बिछावना, तीन तौ ये भए बहरि अनादर कहिए आवश्यकनिमैं उत्साहका अभाव अर पोसहकी सुरत भूल जाना, ए पांच अतीचार मुख्य आचार्यनिनें पोसह विर्षे कहे हैं ॥१२॥
आगे भोगोपभोग विरतिके पांच अतीचार कहै हैंसहचित्त संबद्ध मिश्र दुःखपक्कमभिषवाहारः । भोगोपभोगविरतरतिचाराः पंच परिवाः ॥१३॥
अर्थ--सचित्त वस्तु तथा सचित्त वस्तु करि स्पर्शित वस्तु तथा सचित्त करि मिल्या वस्तु बहुरि दुःखतें पचै ऐसा वस्तु बहुरि काम बढ़ावनेवाला वस्तुका आहार, ये भोगोपभोगविरतिके पांच अतीचार त्यागने योग्य हैं ॥१३॥
आगे दानके अतीचार कहैं हैंमत्सरकालातिकमसचित्तनिक्षेपणा विधानानि । दानेऽन्यव्यपदेशः परिहर्तव्या मलाः पंच ॥१४॥
अर्थ-दानादिसें अनादर भाव सो मात्सर्य कहिए, बहुरि योग्य कालका उल्लंघन करना, बहुरि सचित्त कमलपत्रादि विषं भोजन धरना, बहरि सचित्ततें ढाकना, बहरि अन्यपै आज्ञा करि दिवावना, ये दानमैं पांच अतीचार त्यागना योग्य है ॥१५॥
आगे सल्लेखनाकें अतीचार कहैं हैंजीवितमरणाशंसानिदानमित्रामुराग सुखशंसा । सन्यासे मलपंच कमिदमाहुविदितविज्ञेयाः ॥१५॥
अर्थ यह शरीर अवश्य अनित्य है सो यह कैसे रहैं ऐसी अभिलाषा सो जीवितशंसा कहिए, बहुरि रोगके उपद्रवतें आकुलितपने करि मरण वांछना सो मरणशंसा कहिए, बहुरि परलोकमैं भोगनिकी वांछा करना सो निदान, बहुरि पूर्व मित्रनसू क्रीड़ा करी थी ताका स्मरण करना सो