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________________ १५४] श्री अमितगति श्रावकाचार • आगें देशविरतिके अतीचार कहैं हैं : आनयनयोज्ययोजनपुद्गलजल्पनशरीरसंज्ञाख्याः। अपराधाः पंच मता देशवतें गोचराः सद्भिः ॥६॥ अर्थ--मर्यादा बाहिर खानयन कहएि बुलावना, बहुरि मर्यादा बाहिर योज्य योजन कहिए प्रयोग, बहुरि मर्यादा बाहिर लोष्ठादिकतें कार्य करावना सो पुद्गलक्षेप कहिए, अर मर्यादा बाहिर पुरूषते वचन बोलना अर मर्यादा आदि शरीरकी समस्यातें कार्य करावना। वे पांच अतीचार देशव्रत सम्बन्धी संतननैं कहे हैं ॥६॥ आगें अनर्थ दण्डविरतिके अतीचार कहैं हैंअसमीक्षितकारित्वं प्राहु गोपभोग नरर्थ्यम् । कन्दर्प कौत्कुच्यं मौखर्यमनर्थदण्डस्य ॥१०॥ अर्थ--विना विचारे प्रयोजनतें अधिक करना, बहुरि भोग . उपभोगनिका निःप्रयोजन संचय करना, बहुरि तीव्ररागके उदयतें हास्य मिल्या अयोग्ग वचन कहना सो कन्दर्प कहिए, बहुरि ते तीव्रराग अर अयोग्य वचन दोऊ पर विर्षे शरीरके कर्म करि युक्त होय सो कोत्कुच्य कहिए, बहुरि ढीटपणां सहित असमीचीन बहुत प्रलाप करना सो मोखर्य कहिए । ये पांच अनर्थदण्ड विरतिके अतीचार हैं ॥१०॥ आगै सामायिकके अतीचार कहैं हैंयोगा दुःप्रणिधाना स्मृत्यनुपस्थान मादराभावः । सामायिकस्य जैनैरतिचाराः पंच विज्ञेयाः ॥११॥ अर्थ-दुःप्रणिधान कहिए पापरूप अथवा अन्यथा यौगरूप जे मन वचनकाय तीन तौ ये भये, बहुरि सुरत भूल जाना अर आदरका अभाव, ये पांच अतीचार सामायिकके जैनीन करि जानने योग्य हैं ॥११॥ आग पोसहके अतीचार कहैं हैं या गतोपयोगा उत्सर्गादानसंस्तरकविधाः । उपवासे मुनिमुल्यैरनादरः स्मृत्यसमवस्था ॥१२॥
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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