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________________ १४६ ] श्री अमितगति श्राकवाचार देशनाशक्ति कहिए छुरी विष अग्नि तरवार धनुष इत्यादि हिंसाके उपकरण देना सो हिंसोपकरणदान कहिए । बहुरि पृथ्वी खोदना, वृक्ष मोडना, घास काटना, जल सींचना इत्यादि प्रमाद चरण कहिए। रागादि बढ़ावने वाली खोटी कथा सुननी इत्यादि दुष्ट श्रुति कहिए। ऐसें पांच अनर्थ पाप का त्याग करना सो अनर्थदण्ड विरति जानना ॥ ८१ ॥ बहुरि ताहीके विशेष कहै हैं:-- मंडलविडालकुक्कुटमयूरशुकसारिकादयो जीवाः । हितकामैन ग्राह्याः, सर्वे पापोपकारपराः ॥ ८२॥ अर्थ-हितके वांछक जे पुरुष तिनकरि कुत्ता, बिलाव, मुर्गा और सुवा सारी इत्यादिक सर्व पाप के करावनें विौं तत्पर जीव है ग्रहण करना नाहीं ॥ ८२ ॥ लोहं लाक्षा नीली कुसुम्भ, मदनं विषं शणः शस्त्रम् । संधानक च पुष्पं, सर्वं करुणापरहें यम् ।। ८३ ॥ ___ अर्थ-दया में तत्पर जे पुरुष तिनकरि लोहै लाख नील कुसुम्भ विष सण शस्त्र संधारना पुष्प सर्व त्यागना योग्य है । ॥ ८३ ॥ नीली सूरणकन्दो दिवसहितयोषिते च दधिमथिते । विद्धं पुष्पितमन्नं कालिगं, द्रोणपुष्पिका त्याज्या ॥ ८४ ॥ अर्थ-नील अर सूरण अर कन्द अर दोय दिनके वासे दही अर छाछ बहुरि बीधा अर फूलसहित टपकी लग्या अन्न अर कलीदा अर राई ये त्यागना योग्य हैं ।। ८४ ॥ जैसे अनर्थदण्ड विरतिका वर्णन किया। और आगें सामायिक व्रतकौं कहै हैं आहारो निःशेषो, निजस्थभावादन्यभावमुपयातः । योऽनंतकायिकोऽसौ, परिहर्तव्यो दयालीः ॥२५॥ अर्थ-जो समस्त आहार अपने स्वभावतें अन्य भावको प्राप्त भया चलितरस भया, बहुरि जो अनन्तकाय सहित है सो बहु दयासहित पुष्प. निकरी त्यागना योग्य है । ८५॥
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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