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________________ १२८ ] श्री अमितगति श्रावकाचार बहुरि एकादश गुण जे ग्यारह प्रतिमा तिन विषै प्रवर्तनेवाला होय सो परम श्रावक कहिए है ॥ ११ ॥ संरंभ समारंभारंभैर्योगकृतकारितानुमतैः । सकषायैरभ्यस्तैस्तरसा संपद्यते हिंसा ॥ १२ ॥ त्रित्रित्रिचतुः संख्यैः संरंभाद्यः परस्परं गुणितैः । अष्टोत्तरशतभेदा हिंसा संपद्यते नियतम् ॥१३॥ अर्थ - संरम्भ समारम्भ आरम्भ अर मन वचन काय अर कृत कारित अनुमोदन अर कोध मान माया लोभसहित गुणे भए निकरि वेग करि हिंसा उपजे है ॥ १३ ॥ संरम्भादिक तीन अर योग तीन अर कृत कारित अनुमत ये तीन अर कषाय च्यार इनतैं परस्पर गुणो भएनि करि एकसौ आठ भेदरूप हिंसा निश्चयतें उपजै है | भावार्थ - संरम्भ कहिए हिंसा करनेका श्रद्धान विचार अर समारम्भ कहिये हिंसा उपकरण मिलावना अर आरम्भ कहिए जीवनिका मारना ये तीनों मन वचन काय करि गुणे भए तिनकौं कृत कारित अनुमोदना करि गुणे सत्ताईस भए तिनकौं क्रोधादि च्यार कषायनितें गुणे एकसौ आठ भए । इनसे एकसे आठ भंगनिकी पलटन कैसे होय है सो कहिए है । प्रथम संरम्भ मन करि करया क्रोध सहित ऐसा दूसरा भँग भया, बहुरि समारम्भ मन करि कर्या क्रोध सहित ऐसा तीसरा भँग भया, ऐसें प्रथम भेद समाप्त भए योगरूप दूसरा भेद पलटै जैसे मन कह्या तहां वचन कहना, बहुरि ताकू भी पूर्ण होतें तीसरा भेद पलटै, जैसे कृत कह्या था तहां कारित कहना ताकू भी पूर्ण होतें चौथा भेद पलटै जैसे क्रोध कह्या तहां मान कहना । जैसें भँग पलटनेत एकसौ आठ भेद हिंसाकेहोय हैं ऐसा जानना ।। १३ ।। जीवत्राणेन विना व्रतानि कर्माणि नो निरस्यति । चन्द्र ेण विना नक्षैर्हन्यन्ते, तिमिरजालानि ॥१४॥ अर्थ - जीवनिकी दया विना व्रत हैं ते कर्मनिका नाश नाही
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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