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श्री अमितगति श्रावकाचार
अर सर्व वांछित रचनेमैं प्रवीण ऐसी ज्ञान दर्शन चरित्रको सम्पत्ति अर सबलोकपतिन करि पूजनीकपना ये रात्रिभोजनतैं जो विमुख है ताक होय है ।
भावार्थ- पूर्वोक्त गुण रात्रि भोजनके त्यागी सर्व होय है ऐसा
जानना ।। ६४ ।
शूकरी शेवरी वानरी धावरी, रोहिणी मंडली शोकिनी क्लेशिनी ।
दुर्भगा निःसुता निर्धवा निर्धना, शर्वरीभोजिनी जायते भामिनी ॥ ६५ ॥
अर्थ - - रात्रि विषै भोजन करनेवाली स्त्री है सो सूकरी भीलनी वानरी धीवरी रोहिणी कुत्ती शोकसहित केल्शसहित दुर्भग पुत्र रहित पति रहित धन रहित ऐसी होय है ।। ६५ ।।
बांधवैरंचिता देहजैर्वदिता, भूषणैर्भूषिता व्याधिभिर्वजिता । श्रीमती हीमती धर्मिणी, वासरे जायते भुक्तितः शर्मणी ॥ ६६ ॥
अर्थ - बांधवनि करि युक्त अर पुत्रनि करि वंदित अर आभूषणनि करि भूषित अर रोगनि करी वर्जित लक्ष्मीवान लज्जावान बुद्धिवान धर्मात्मा ऐसी सुखरूप स्त्री है सो दिनविषै भोजन तैं होय है ।
मावार्थ - जो रात्रि विषे भोजन त्याग है सो पूर्वोक्त गुणसहित होय है ॥ ६६ ॥ रात्रिभोजनविमोचिनो गुणा, ये भवंति भवभागिनां परे । तानपास्य जिननाथमीशतें, वक्तुमत्र न परे जगत्रये ॥६७॥
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अर्थ – जीवनिक रात्रि भोजन त्यागके उत्कृष्ट गुण हैं तिनहि तीनलोक विषे जिनराज सिवाय और कोई कहनेकौं समर्थ नांहीं है ॥६७॥
ऐसें रात्रि भोजनका निषेध किया, आगें पंच उदंबर फलनिका निषेध कर है