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पंचम परिच्छेद
पंचम परिच्छेद
आगे व्रतनिका वर्णन करें हैं,
मद्यमांसमधुरात्रिभोजनं, क्षीरवृक्षफलवर्जनं
त्रिधा ।
कुर्वते व्रतजिघृक्षया बुधास्तत्र, पुष्यति निषेविते व्रतम् ॥१॥
है ॥२॥
श्रर्थ - पण्डित हैं ते ब्रतग्रहणकी इच्छा करि मदिरा मांस अर मधु अर रात्रिविषे भोजन अर क्षीरवृक्ष कहिये जिनमें दूध निकसें ऐसे वड़ पीपर ऊमर इत्यादिकनिके फल इनका त्याग मन वचन कायकरि करें है जातें तिनके त्याग का सेवन करे संतें व्रत पुष्ट होय है ।
भावार्थ - जाकै व्रत की चाह है सो प्रथम मदिरादिकनिका त्याग
अवश्य करें इनके त्यागे व्रत पुष्ट होय है ॥१॥
आगें प्रथम ही मदिरा का निषेध कर है—
पलायतें,
दूरतः ।
महोदयं, गुरुवाक्यमोचिनः ॥ २ ॥
अर्थ - जैसे दरिद्री पुरुष की स्त्री भाग जाय है तैसें मदिरा पीनेवाले की बुद्धि भाग जाय है, बहुरि निंदा वृद्धिको प्राप्त होय है जैसें गुरुके वचन न माननेवालेकै दुःख वृद्धि को प्राप्त हो जाय हैं तैसें ।
भावार्थ - मदिरा पीनेवालेकी बुद्धि बिगड़ जाय है अर निंदा होय
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मद्यपस्य
धिषणा
दुर्भगस्य वनितेव वनितेव
निद्यता च लभते
क्लेशितेव
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विह्वलः स जननीयति प्रियां, मानसेन जननीं प्रियीयति ।