________________
१०० ]
श्री अमितगति श्रावकाचार
बहुरि क है है
जननी जगतः पूज्या, हिंसिता येन जन्मनि । मांसोपदेशिनस्तस्य, दया शौद्धोदनेः कथम् ॥६०॥
प्रथ-- जगत के पूजने योग्य जो माता सो जानें जन्मविषै मारी ता मांस के उपदेश करनेवाले बुद्ध कै दया कैसे होय ।
भावार्थ -- बौद्धमत मैं कह्या है कि बुद्ध माता का उदर फाड़कर निकल्या है अर मांस भक्षण मैं दोष नाहीं ताकू आचार्यनैं कह्या ऐसे बुद्ध के दया काकी ॥०॥
ऐसें बुद्धका निराकरण किया, आगें कपिलका निराकरण
करे है
यो ज्ञानं प्राकृतं धर्म, निर्गुणो निष्क्रियो मूढः,
भाषतेऽसौ निरर्थकः ।
सर्वज्ञः कपिलः कथम् ॥ १ ॥
भावार्थ - कपिल ज्ञानकौं तो प्रकृतिका धर्म कहे है अर आत्माकौं निर्गुणक्रिया रहित प्रयोजनरहित अज्ञान कहैं है ताकू आचार्यने कह्या जो ऐसा सर्वज्ञ कपिल कैसें होय । तातें कपिल का मत मिथ्या है ॥ ६१ ॥
आगे और भी कुदेवादिक हैं तिनका निषेध कर हैआर्यास्कंदाननादित्यसमीरणपुरः सराः । निगद्यन्ते कथं देवाः, सर्वदोषपयोधयः ॥६२॥
- सर्वदोषनिके समुद्र ऐसे जे देवी स्कन्द कहिए स्वामिकार्तिकेय अग्नि सूर्य वायु इत्यादिक हैं ते देव कैसें कहिए है ।
भावार्थ - राग द्वेषादि दोष जिनमें पाइये ऐसे कुदेवनिकों देव कंसें कहिए ||२||
आगे फेर कहैं हैं
गूथमश्चानि या हंति, खुरशृंगैः शरीरिणः । सा पशुगौं : कथं वंद्या, वृषस्यन्ती स्वदेहजम् ॥६३॥