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जैन स्टडी ग्रुप का निर्माण किया । धार्मिक शिक्षण का स्वप्न साकार होने में मदद रूप होवे इसलिए 1984 से नियमित स्वाध्याय आदि शुरु हो गया । इस निमित्त स्वाध्याय, वांचन, लेखन, स्तवन, स्तुतियाँ आदि को विविध रंगों में रचने आदि से लेकर अनेक ज्ञानियों के व्याख्यानों, मुनि भगवंतों की श्रुत वाणी का संकलन करने की भूख जगी । देव, गुरु, धर्म के आशीष से ई. सं. 1996 से 2001 के दरम्यान जैन ग्रुप सह 'तत्वार्थधिगम सूत्र' के स्वाध्याय बाद 'स्वाध्याय अध्ययन संग्रह' का संकलन प्रकाशित हुआ । उसके पश्चात् दो वर्ष उसका पुनरावर्तन एवं 'प्रथम कर्मग्रंथ' का स्वाध्याय एक वर्ष तक हुआ । जैन ग्रुप में सदस्यों के इस उपादेय लक्ष्य का आदर कैसे भूलें ?
2005 में ‘आरोह, अवरोह एवं अरिहंत' कृति का संग्रह प्रकाशित हुआ । इस सर्जन में आध्यात्म के आत्मसातमय पवित्र एहसास, चंदन के लेप की तरह 'उपशम' और 'क्षयोपशम भाव द्वारा अंतर को आनंद से भरता रहा । देह के रोमरोम को रंगता रहा । नवम्बर 2011 में अंतर एवं आंखों में स्व लिखित कृति का संग्रह कर प्रकाशन करने के आनन्द द्वारा, जीवन के संध्या काल में मानों कि युवानी मिली हो। तीन विभाग में प्रसंगोपात्त बदलते भावों के सर्जन में तृतीय विभाग : 'अप्पाणं वोसिरामि' आध्यात्म के अमृत झरना रुप अध्यवसाय के स्वाद को, जागृत रखने में एक अचिंत्य बल देता रहा है।
प्रस्तुत संग्रह श्रुत भीनी आंखों में बिजली चमके' का प्रकाशन प्रस्तुत करते अंतर के शुभ अध्यवसायों का मेघ जीवन के अंत तक आत्मा को भीगाता रहे ऐसी प्रभु चरणे प्रार्थना ....
-- विजय दोशी
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