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आभार- धन्यवाद
हमारी जीवन यात्रा अनगिनत उपकारों से भरी है । इन उपकारों का शब्दों में धन्यवाद और आभार व्यक्त करना और मानना असंभव है । सिंहावलोकन के दर्पण में सरलता के नेत्रों में भूतकाल एवं वर्तमान के | उपकारी स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं ... इनकी शुरूआत हमारे पूज्य माताजी- पिताजी और परिवार से है । शिक्षा, दीक्षा, धर्म एवं संस्कारों के दाता और मार्गदर्शक आदरणीय गुरुभगवंत हैं । इस क्रम में अपने करीब के | अनेक शुभचिंतक और हितेषी भी हैं, जो आवास प्रवास और कई निवासों के भ्रमण में सम्पर्क में रहे हैं । इन सभी को शत्-शत् नमन |
जन्मभूमि भारत से कर्मभूमि अमेरिका में हमारे संसार की शुरुआत हुई। पिछले 23 बरस से शार्लोट (अमेरिका) के निवासी हैं । इस प्रवास में जीवन के सभी पहलु -व्यवसाय, धर्म और संस्कृति विकसित हुई। और हम निरन्तर जैन धर्म से जुड़े रहे, स्वाध्याय की जागरूकता रही और इस (श्रुत भीनी आँखों में बिजली चमके) का हिन्दी अनुवाद की प्रेरणा स्वाध्याय की ही देन है । 1993 से शार्लोट आने के पश्चात् परम आदरणीय श्री विजय भाई दोशी का स्वाध्याय जैन स्टडी ग्रुप में सुनने को मिला और इस ज्ञान गंगा का सतत् प्रवाह कायम है। श्री विजय भाई तो अनेक दशकों से स्वाध्याय की प्रभावना बांट रहे हैं और | इन्होंने कई पुस्तकें प्रकाशित की है । इसी श्रंखला क्रम का अनमोल मोती “श्रुत भीनी आंखों में बिजली चमके" है ।
मधु और मेरी विनम्र विनती स्वीकार कर विजय भाई ने हमें हिन्दी अनुवाद करने की अनुमति दी, यह हमारा सौभाग्य है। जिसके लिये हम चिरऋणी हैं और रहेंगे। स्वाध्याय की आनंद भरी ऊर्जा और विचार दृष्टि में सरलता की दिशा का आव्हान किया है, यह अनुभव अवर्णनीय है । हमारी सविनय उम्मीद है | कि जिनवाणी के लालसी इस अमृत का श्रवण पान करते रहेंगे ।
“श्रुत भीनी आँखों में बिजली चमके " का हिन्दी अनुवाद को साकार करने वाले अनेक धर्मानुरागी प्रिय जन हैं जिनका बहुत-बहुत आभार एवं धन्यवाद ! विशेषकर प्रिय रवि नाहर जिनका निःस्वार्थ सतत् प्रयास अत्यन्त सराहनीय है। रविजी बहुत बहुत धन्यवाद और प्रशंसा के पात्र हैं । श्री सुमितजी नाहर ने भी संशोधन में जो योगदान दिया है इसका बहुत बहुत धन्यवाद और आभार.... । धन्यवाद के नामों में श्री | निकित मेहता अनुवादक एवं श्री गणेश प्रिन्टिंग प्रेस, जावरा, जि. रतलाम के श्री अशोकजी अर्पितजी सेठिया हैं ।
अनुवाद का अनेकार संशोधन श्री विजय भाई ने किया, उनके इस अमूल्य समय और सहयोग के लिये हम सब हिन्दी भाषी बहुत-बहुत शुक्रगुजार हैं और रहेंगे। आदरणीय श्री विजय भाई को हमारा शत्-शत् प्रणाम | और अन्त में कोई भी त्रुटि अथवा अविनय के लिये हम सविनय क्षमाप्रार्थी हैं ।
सविनय
मधु - पद्म धाकड़
U.S.A.