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* जैन साधु की प्रत्येक क्रिया पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं वनस्पति के आदर के साथ जुड़ी है
छ: आवश्यक : सामायिक का आधार तीर्थंकर भी लेते हैं । यह कर्म निर्जरा का अमोघ I साधन है । जैन धर्म प्रक्रिया का एक आदर्श शिखर सामायिक है । 48 मिनिट की एकाग्रता आधि, व्याधि, उपाधि दूर करने में समर्थ है । Blood Pressure, Cholesterol Level, Depression आदि में लाभदायक, समायिक ही है । इसी विचारधारा में लोगस्स, वांदणा, प्रतिक्रमण आदि वैज्ञानिक जयणा के बिना नहीं रहता।
* खमासणां : समस्त प्रक्रिया देह के भिन्न-भिन्न केन्द्रों पर असर करती है ।
जयणा : सूक्ष्म जीवों की जयणा, गैस को पूंजना, पानी छानन, पानी उबालकर पीना, सब्जी बनाते समय सूक्ष्म जंतुओं की सावधानी जैन आचार उच्च कक्षा में रखता है । उपकरण : चरवला, कटासना आत्मा पर लगी हुई कर्मरज को जयणा के भाव से निर्मल करता है । कटासना सफेद रंग का ऊन का ही क्यों ? सामायिक दरम्यान जागृत शक्ति को शरीर में से बाहर निकलते अवरोध करता है । श्वेत रंग शांति एवं आध्यात्मिक परिणति प्रकट करता है । मुंहपत्ति वचन गुप्ति को संपोषित करती है । वायुकाय के सूक्ष्म जंतुओं की जयणा का पालन होता है । स्थापनाचार्य गुरु का महान योग अनुपस्थित होने के पश्चात् भी उपस्थित पूरी करते हैं ।
* आहार विज्ञान : अनाज अंकुरित होने से अनंतकाय आदि जीव उसमें उत्पन्न होते हैं, इसलिए इसका निषेध होकर जैन इसे खाते नहीं । आटा कुछ दिनों तक ही रखा जाता है। दही की मर्यादा 48 मिनिट, खिचड़ी - दाल - सब्जी - भाजी 6 घंटे, रोटी - चावल 12 घंटे, लड्डूडू - खाजे 24 घंटे विगिरे मर्यादा कही है । उबले हुए पानी की समय मर्यादा सामान्यतः 12 घंटे है ।
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* मृत्यु को महोत्सव बनाती क्रियाविधि जैन धर्म ने बताई है । संलेखना द्वारा मृत्यु को किस प्रकार सुधारना, यह बात गौरव का अनुभव कराती है ।
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