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________________ मुनिभगवंतों की वाणी जीवन - मृत्यु प. पू. मुनिराज श्री हरीशभद्र विजयजी लिखित पुस्तक "फूल अने फोरम” में से नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावकः | न चैनं कलेदयन्त्यापो, न शौषयति मारुत: ॥ भावार्थ - कोई भी शस्त्र आत्मा का विनाश नहीं कर सकता, अग्नि जला नहीं सकती, नीर भीगा नहीं सकता एवं वायु उसे सुखा नहीं सकती । आत्मा अमर है । (कर्म) बंध समये चित्त चेती ए रे, उदये शा संताप ? आउर पच्चक्खाण, पयन्ना सूत्र में ध्यान के प्रकारों का अधिकार आता है । उसमें आर्तध्यान के 60 प्रभेद बताए गए हैं । आवश्यक सूत्रों में जय वीयराय, णमुत्थुणं सूत्र वीतराग परमात्मा का परिचय करवाने वाले तथा देवाधिदेव समक्ष प्रार्थना करने वाले सूत्र हैं । उसमें आराधक अपनी तेरह मांगों के साथ मात्र समाधिमरण की याचना करता है । 1. भव के प्रति उदासीनता, 2. मार्गानुसारिता, 3. वांछित फल की प्राप्ति, 4. लोक विरुद्ध कार्यों का त्याग, 5. गुरुजनों की पूजा, 6. परोपकार, 7. सद्गुरु का मिलाप, 8. उनके वचनों की सेवा, 9. उनके चरणों की सेवा, 10. दुःख का क्षय, 11. कर्म का क्षय, 12. समाधिमरण, 13. समकित का लाभ । ज्ञान प्राप्ति, संस्कारनिधि, समझ शक्ति, बुद्धि एवं संतोष की वृत्ति, रखने से जीवन सफल बनता है। संतोषी जीव का ज्ञानधन खूटता नहीं, आपत्ति नहीं आती, इससे कालांतर में घटती है और निश्चित ही मुक्ति मिलती है । इसीलिए कहा गया है कि 'संतोषी नर सदा सुखी' तृप्ति रखने से, इन्द्रियों की शिथिलता जीवन में अवरोध उत्पन्न नहीं कर सकती है। आहार संज्ञा को घटाना हो तो वृत्तिसंक्षेप, रसत्याग, उणोदरी आदि तप करने का आदेश है । 32
SR No.007276
Book TitleShrut Bhini Ankho Me Bijli Chamke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijay Doshi
PublisherVijay Doshi
Publication Year2017
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size38 MB
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