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आणा ए धम्मो * भव्यात्माओं की सभा में वीतराग भगवंतों की पवित्र वाणी विक्रय करने का स्वर्णिम
अवसर पुण्योदय हो तब ही प्राप्त होता है । इस हेतु सबका ऋण अपने पर लेकर इच्छा
करें कि सभी आत्म कल्याण के मार्ग पर प्रगति करें..... जिनाज्ञाः जैसे तुझे तेरी आत्मा प्यारी है वैसे ही
समस्त जीवों को स्वयं की आत्मा प्यारी है, इसलिए सर्वजीवों में समदृष्टि रख,
सर्व जीवों को तेरी तरह ही सुख प्यारा है। चार ध्यान में दो ध्यान शुभ है । उसमें भी धर्मध्यान तो सम्यग्दृष्टि आत्मा ही कर सकता
है।
जिसके चार प्रकार हैं, उसका पहला भेद
1. आज्ञा विचय 2. अपाय विचय 3. विपाक विचय 4. संस्थान विचय। आज्ञा विजय : (जिनेश्वर की आज्ञा का चिंतन)
दयाधर्म आज्ञा में रहकर पालना चाहिए । प्रत्येक जीवों के प्रति दया । फ्रीज में दही खट्टा हो ही जाता है । काल आते ही रात्रि में तमस्काय के जीव उत्पन्न हो ही जाते हैं।
दैनिक जीवन में व्यवहार लूखा नहीं रखना हो जिनाज्ञा में रहकर धर्म आचरण करना चाहिए।
ध्यान से कर्मों का नाश होता है। श्रवण-मनन-चिंतन-ध्यान से कर्मबंध ढीले होते हैं। * धर्म का पालन करना हो तो सर्वप्रथम जिनाज्ञा में रहना प्रारंभ करे । पश्चात् नैतिक
कर्तव्य अदा करो । दया, परोपकार, करुणा, मैत्री, नियम, भक्ति सर्व कर्तव्यों का पालन करो।
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