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©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®©®OG द्वितीय 'त्रिपदी' जगत के समस्त पदार्थों
उत्पन्न होते है - उपन्नई वा नाश होते है - विगमेई वा तथा अवश्य ध्रुव रहते है - धुवेई वा पदार्थ पूर्व अवस्था से व्यय होता है और उत्तरावस्था से उत्पन्न होता है।
द्रव्य अवस्था से ध्रुव ही रहता है। * जैसे-जैसे भोग भोगते रहेंगे, वैसे-वैसे अभिलाषा में वृद्धि होती रहेगी । भोग की
अभिलाषा तृत्प ही नहीं होती है। जैसे खुजली के रोगी की खुजली करने पर। * जीवो की हिंसा के बिना भोग सुख संभव नहीं है । मानव भव अवश्य दुर्लभ है । परन्तु
भोग सुख के लिए नहीं, धर्म करने के लिए है । तिर्यंच-देव आदि भवों में भी भोग
उपलब्ध है। * मानव भव में धर्म प्राप्ति की सुलभता है वह अन्य भवों में नहीं है । इसलिए भोग सुख
त्याज्य है। * सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होते ही तत्काल समझ की जानकारी होती है। आत्मा को भावित करिए :
ध्यान धरने के पूर्व आत्मा को भावित करना जरुरी है। 1. णमो अरिहंताणं' की पाँच माला गिनने के पूर्व आत्मा को भावित करिए।
हे सीमंधर स्वामी, हे प्रभो ! मुझे आपका मार्गदर्शन मिलता रहे । आप तो सर्वज्ञ हो । अरिहंत पद का ध्यान धरते मुझे सम्यगदर्शन प्राप्त हो । प्राप्त हुआ सम्यग्दर्शन विशुद्ध बने । मुझे अभय स्थिति' मिले एवं प्राप्त मार्गदर्शन में स्थिर रहने की शक्ति मिले । णमो अरिहंताणं, णमो अरिहंताणं, णमो अरिहंताणं कहकर माला गिनना।
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